शिमला, 16 अप्रैल। राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय ने आज साहित्यकार, समाजसेवी और सूचना एवं जन संपर्क विभाग से सेवानिवृत्त अधिकारी शिव सिंह चौहान द्वारा लिखित पुस्तक- हिमाचल प्रदेश के पांच सपूत का विमोचन किया। यह पुस्तक हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों के राज्य के विकास में योगदान पर केंद्रित है।
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लक्ष्य पर नजर कर न इधर न उधर
तीर को तु साध ले तेरा लक्ष्य है जिधर लक्ष्य पर नजर कर न इधर न उधर
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हमीरपुर, 27 मार्च। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर की पहल पर हिमाचल प्रदेश के पूर्ण राज्यत्व के स्वर्णिम जयंती वर्ष के तहत आयोजित की जा रही स्वर्णिम हिमाचल रथ यात्रा में राज्य के 50 वर्षों की विकास यात्रा को प्रतिविंबित करने के लिए लोक कलाकार भी महत्वपूर्ण योगदान देंगे।
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ऊना। भाषा एवं संस्कृति विभाग जिला ऊना द्वारा मकर संक्रांति पर्व के उपलक्ष्य पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन का आयोजन करवाया गया। जिसमें जिले के प्रतिष्ठित 19 कवियों ने भाग लिया। साहित्यकारों ने लोहड़ी पर्व के अवसर पर अपनी-अपनी कविताओं द्वारा हर्षोलास की अभिव्यक्ति की तथा जिला भाषा अधिकारी ऊना द्वारा कवियों व साहित्यकारों का स्वागत किया गया। इस अवसर पर बलविंद्र सिंह घनारी ने 'आओ लोहड़ी मनाएं’ 'साले-साले लोहड़ी आई’ ’सानु अम्मा बापु याद करन ओ’ कविता पढ़कर सुनाई। ओंकार प्रसाद डांग ने ’खिल खिला कर हंसी फिर’, ’एक दम गंभीर मुद्रा में लाश’ बन कविता सुनाई। डा. योगेश चंद्र सूद ने ’लोहड़ी का त्योहार’ नववर्ष का उपहार कविता पढ़ी। केएल बैंस ने ’आप हो मात्र एक वोट’, य’ारो मेरी बात कर लेना नोट’, नेताओं की यही है सोच आप हो मात्र एक वोट कविता पढ़ी। सूरम सिंह ने ’आई लोहड़ी गया स्याल कोहढ़ी’, कविता सुनाई।
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मंडी, 18 दिसंबर(मुरारी शर्मा)। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला की ऐतिहासिक स्थली पांगणा सुकेत क्षेत्र के लोकप्रिय लोकगीत लाड़ी सरजू की रंगभूमि रही है। इस लोकगीत का इतिहास सुकेत रियासत से जुड़ा है। सरजू सुकेत रियासत के राजदरबार की विख्यात नृत्यांगना थी। जिसका रूप लावण्य मनोहारी था। सरजू के व्यवहार में एक अजीब आकर्षण था। मजे की बात है कि सरजू के अनुपम सौंदर्य पर सुकेत का राजा भी मोहित हो गया था। सरजू की अलौकिक सुंदरता के कारण उसे लाड़ी शब्द से अभिहित किया गया है। लाड़ी का पहाड़ी बोली में अभिप्राय रूपसी नारी से है।
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मोदी है तो मुमकिन है लेकिन अब फँसा डाला भक्तों ने किसानों को खालिस्तानीं बता डाला,
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मंडी, 27 नवंबर (मुरारी शर्मा)। हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय शिमला के चित्रकला विभाग के प्रोफेसर डॉ नंदलाल ठाकुर राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के उपाध्यक्ष बने हैं। सन् 1954 में गठित ललित कला अकादमी भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत स्थापित है।
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कुल्लू, 16 नवंबर। मेमे फाउंडेशन अगले साल से प्रसिद्ध साहित्यकार छेरिंग दोरजे के नाम से विभिन्न विषयों में पदक और छात्रवृत्ति की शुरूआत करेगा। दोरजे की शुक्रवार को कोरोना संक्रमण की वजह से मौत हो गई थी। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के करीब रहे दोरजे हिमालय के जीते जागते नालंदा थे। दोरजे ने अपने धर्म इतिहास संस्कृति भाषा बनस्पति विज्ञान आदि कई विषयों पर असीमित ज्ञान के प्रकाश से कई दशकों तक मानव समाज की सेवा की।
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बिलासपुर, 27 अक्टूबर। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय ने आज संस्कृति भवन बिलासपुर के बैठक कक्ष में पूर्ण राज्यत्व की 50वीं जयन्ती समारोह के उपलक्ष्य में पहाड़ी सप्ताह के अन्तर्गत जिला स्तरीय कवि लेखक गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला भाषा अधिकारी नीलम चन्देल ने की, जबकि मंच का संचालन सुरेन्द्र मिन्हास ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ साहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती का दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। जीतराम सुमन व बन्दना ठाकुर ने मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की। आयोजन दो सत्रों में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में पहाड़ी बोलियों /स्थानीय बोली पर चर्चा-परिचर्चा की गई जिसमें सभी साहित्यकारों ने अपने मत एवं सुझाव दिए।
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नंगे पैर, भूखे पेट, कैसे लौटे अपने गांव, ये बात हम याद रखेंगे। देश भूख से मर रहा है। हंगर इंडेक्स में बांग्लादेश से भी नीचे गिर रहा है। वो देश बेच रहा है और हम तमाशा देख रहे हैं। क्योंकि वो खिलाड़ी है, उसने बचपन से बेचना सीखा है। चाय से लेकर खेत और रेलवे से लेकर एयरपोर्ट वो सब बेच कर चला जाएगा
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बिलासपुर, 10 अक्टूबर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद पंजीकृत जिला बिलासपुर हिमाचल प्रदेश के नवनिर्वाचित अध्यक्ष डॉक्टर अनेक राम संख्यान ने कहा कि साहित्यकारों को मुंशी प्रेमचंद से प्रेरणा लेकर साहित्य का सृजन करना चाहिए।
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डा. अर्चना डिमरी एक उदयीमान लेखिका है। इतिहास की प्रवक्ता है लेकिन सरकारी नहीं। गुरुकुल में पढ़ाती हैं। सरकार ने उसे परीक्षा में टॉपर होते हुए भी मूल निवास प्रमाणपत्र न होने पर नौकरी नहीं दी। गजब हाल हैं। यह पुस्तक बेहतरीन है और उत्तराखंड राज्य आंदोलन का दस्तावेज है। हमारी नई और भावी पीढ़ी को इस पुस्तक से जानकारी मिलेगी कि इस राज्य के गठन के लिए हमने क्या खोया? क्या संघर्ष किया और कैसे राज्य हासिल किया। डा. अर्चना की सोच देखिए, उसकी पहली पुस्तक है और चाहती तो किसी मंत्री या नेता से इसका लोकार्पण करवा सकती थी, लेकिन उसने पुस्तक के लोकार्पण के लिए दो अक्टूबर का दिन और जगह देहरादून स्थित कचहरी परिसर का शहीद स्थल चुनी।
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