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हिमाचल हाईकोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियां रद्द कीं, रिक्‍त माने जाएंगे दोनों पद

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Tuesday, September 21, 2021 20:22 PM IST
हिमाचल हाईकोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियां रद्द कीं, रिक्‍त माने जाएंगे दोनों पद

शिमला, 21 सितंबर। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने दो सिविल जजों की नियुक्तियों को रद्द कर दिया है। कोर्ट ने फैसले में इन पदों के लिए चयन प्रक्रिया को नियमों के विपरीत व अवैध करार दिया और इन दोनों पदों को वर्ष 2021 की रिक्‍तियां मानते हुए ये पद नए सिरे से भरने के आदेश जारी किए हैं। न्यायाधीश तरलोक सिंह चैहान और न्यायाधीश संदीप शर्मा ने दोनों जजों की नियुक्तियों को चुनौती देने वाली याचिकाओं का निपटारा करते हुए सिविल जज विवेक कायथ व आकांक्षा डोगरा की नियुक्तियों को रद्द करने का फैसला सुनाया।

 

ये दोनों जज वर्ष 2013 बैच के एचपीजेएस अधिकारी थे। कोर्ट ने पाया कि दोनों जजों की नियुक्तियां उन पदों के खिलाफ की गईं, जिनका कोई विज्ञापन नहीं दिया गया। बिना विज्ञापन के इन पदों को भरने पर कोर्ट ने हिमाचल प्रदेश लोक सेवा आयोग को चेताया कि भविष्य में ऐसी लापरवाही न करें। मामला यह था कि एक फरवरी 2013 को प्रदेश लोक सेवा आयोग ने सिविल जजों के आठ रिक्त पदों को भरने के लिए विज्ञापन के माध्यम से आवेदन आमंत्रित किए। इनमें छह पद पहले से रिक्त थे और दो पद भविष्य में रिक्त होने थे। आयोग ने अंतिम परिणाम निकाल कर कुल आठ अभ्यर्थियों की नियुक्तियों की अनुशंसा सरकार से की और अन्य सफल अभ्यर्थियों की एक सिलेक्ट लिस्ट भी तैयार की।

 

इस बीच प्रदेश में दो सिविल जजों के अतिरिक्त पद सृजित किए गए। लोक सेवा आयोग ने इन दो पदों को सिलेक्ट लिस्ट से भरने की प्रक्रिया आरंभ की और विवेक कायथ और आकांक्षा डोगरा को नियुक्ति देने की अनुशंसा की। सरकार ने इन्हें नियुक्तियां भी दे दी थीं। कोर्ट ने दोनों की नियुक्तियों को रद्द करते हुए कहा कि इन नए सृजित पदों को कानूनन विज्ञापित किया जाना जरूरी था ताकि अन्य योग्यता रखने वाले अभ्यर्थियों को भी इन पदों के लिए प्रतिस्पर्धा का मौका मिलता। फैसले में स्पष्ट किया गया है कि इन जजों की नियुक्तियां रद्द होने से इन दोनों पदों को वर्ष 2021 की रिक्तियां माना जाएगा और इन्हें भरने की प्रक्रिया कानून के अनुसार की जाएगी।

 

कोर्ट ने अपने निर्णय में ये भी कहा है कि न्याय प्रक्रिया में जनमानस के विश्वास के दृष्टिगत यह वांछित है कि इस प्रक्रिया से जुड़े लोगों का चयन पारदर्शी तरीके से हो। यदि लोगों के मामलों का निपटारा करने वाले न्‍यायिक अधिकारी की अपनी ही चयन प्रक्रिया नियमों के विपरीत हो तो इससे लोगों का न्यायपालिका से विश्वास उठ जाएगा।

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