Wednesday, May 15, 2024
BREAKING
जवाली, फ़तेहपुर और इंदौरा में आनंद शर्मा का विशाल जनसमूह ने किया स्वागत विनोद सुल्तानपुरी के नामांकन में शामिल हुए सीएम, भाजपा पर बरसे नशेड़ी पति से त्रस्‍त महिला ने रॉड से पीट कर मौत के घाट उतारा जसवां परागपुर से था बिकाऊ विधायकों का चौकीदार, होशियार के खोलूंगा चिट्ठे : सुक्‍खू काँगड़ा को ऐसे सांसद की ज़रूरत है, जिसकी आवाज पूरा देश सुने: मुख्यमंत्री बेईमानों का कभी साथ नहीं देती देवभूमि की जनता : मुख्यमंत्री पांचवीं बार 5 लाख वोटों से जीतेंगे अनुराग ठाकुर : जयराम ठाकुर छह दागियों ने स्वीकार किया अपना गुनाह, भाजपा ने रुकवाई महिलाओं की पेंशन: कांग्रेस  मुख्यमंत्री की तानाशाही से उनके ज़िले के तीन विधायक पार्टी छोड़ गये: जयराम ठाकुर सत्ता में रहते पांच साल जयराम ने की हमीरपुर की अनदेखीः सीएम
 

काबुल में अब भारत क्या करे?, डॉ. वेदप्रताप वैदिक की कलम से

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Saturday, July 24, 2021 02:30 AM IST
काबुल में अब भारत क्या करे?, डॉ. वेदप्रताप वैदिक की कलम से


अफगानिस्तान के बारे में बात करने के लिए हमारे विदेश मंत्री पिछले दो-तीन सप्ताहों में कई देशों की यात्रा कर चुके हैं लेकिन अभी तक उन्हें कोई रास्ता दिखाई नहीं पड़ रहा है लेकिन अगले एक सप्ताह में दो विदेशी मेहमान दिल्ली आ रहे हैं— अफगान सेनापति और संयुक्तराष्ट्र संघ महासभा के नए अध्यक्ष! यदि हमारे नेतागण इन दोनों से कुछ काम की बात कर सकें तो अफगान-संकट का हल निकल सकता है। अफगानिस्तान के सेनापति जनरल वली मोहम्मद अहमदजई चाहेंगे कि तालिबान का मुकाबला करने के लिए भारतीय फौजों को हम काबुल भेज दें। जाहिर है कि इसी तरह का प्रस्ताव प्रधानमंत्री बबरक कारमल ने 1981 में जब मेरे सामने रखा था तो प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पहले ही पूछकर मैंने उन्हें असमर्थता जता दी थी। नजीबुल्लाह के राष्ट्रपति-काल में भारत ने अफगान फौजियों को प्रशिक्षण और साज-ओ-सामान की मदद जरुर दी थी। अब भी पाकिस्तानी मीडिया में प्रचार हो रहा है कि भारत अपनी मशीनगनें गुपचुप काबुल भिजवा रहा है। भारत अपनी फौज और हथियार काबुल भेजे, उससे भी बेहतर तरीका यह है कि वह अफगानिस्तान में संयुक्तराष्ट्र की शांति-सेना को भिजवाने की पहल करे।
इस पहल का सुनहरा अवसर उसके हाथ में ही है। इस समय संयुक्तराष्ट्र महासभा का अध्यक्ष मालदीव को चुना गया है। वह भारत की पहल और मदद से ही वहां तक पहुंचा है। संयुक्तराष्ट्र महासभा के नव-निर्वाचित अध्यक्ष मालदीवी विदेश मंत्री अब्दुल्ला शाहिद भी दिल्ली आ रहे हैं। महासभा के अध्यक्ष के नाते वे काबुल में शांति-सेना का प्रस्ताव क्यों नहीं पारित करवाएं? उस प्रस्ताव का विरोध कोई नहीं कर सकता। यदि वह सं.रा. महासभा में सर्वसम्मति या बहुमत से पारित हो गया तो सुरक्षा परिषद में उसके विरुद्ध कोई देश वीटो नहीं करेगा। चीन पर शक था कि पाकिस्तान को खुश करने के लिए वह ‘शांति-सेना’ का विरोध कर सकता है लेकिन पाकिस्तान खुद अफगान गृह-युद्ध से घबराया हुआ है और चीन ने भी ईद के दिन तालिबानी बम-वर्षा की निंदा की है। भारत की यह पहल तालिबान-विरोधी नहीं है। भारत के इस प्रस्ताव के मुताबिक शांति-सेना रखने के साल भर बाद अफगानिस्तान में निष्पक्ष आम चुनाव करवाए जा सकते हैं। उसमें जो भी जीते, चाहे तालिबान ही, अपनी सरकार बना सकते हैं। संयुक्तराष्ट्र की शांति सेना में यदि अफगानिस्तान के पड़ौसी देशों की फौजों को न रखना हो तो बेहतर होगा कि यूरोपीय और अफ्रीकी देशों के फौजियों को भिजवा दिया जाए। अफगानिस्तान की दोनों पार्टियों— तालिबान और सरकार से अमेरिका, रुस, चीन, तुर्की और ईरान भी बात कर रहे हैं लेकिन भारत का तालिबान से सीधा संवाद क्यों नहीं हो रहा है? भारतीय विदेशनीति की यह अपंगता आश्चर्यजनक है। वह दोनों को क्यों नहीं साध रही है? इस अपंगता से मुक्त होने का यही समय है।
(लेखक, भारतीय विदेश नीति परिषद के अध्यक्ष हैं)

VIDEO POST

View All Videos
X