Wednesday, May 15, 2024
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चचा 405 दिन अंतरआत्मा की सुन लो, क्या पता फिर मौका मिले, न मिले!

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Sunday, December 20, 2020 20:26 PM IST
चचा 405 दिन अंतरआत्मा की सुन लो, क्या पता फिर मौका मिले, न मिले!

प्यारे चचा को नालायक भतीजे की ओर से जन्मदिन की शुभकामनाएं
चचा, आपको उत्तराखंड का इतिहास बनाने के लिए 1825 दिन मिले थे। इनमें से 1391 दिन आपने यूं ही बेकार गंवा दिये। एक दिन गैरसैंण ग्रीष्मकालीन राजधानी घोषित की। अब आपके पास 433 दिन बाकी हैं। इनमें से 14 दिन कोरोना काल में बिता दोगे और अगले 14 दिन कोरंटाइन में। यानी अब कुल 45 दिन ही बचे हैं इतिहास बनाने के लिए।

ओह चचा, आप पर कभी तरस आता है तो कभी गुस्सा। क्या करूं चचा, देख कर चाय में मक्खी, निगली नहीं जाती। 1391 दिन सरकारी आवास में बिताए, हेलीकाॅप्टर में घूमे, पांचतारा में खाना खाया। खूब ऐश किया। दुनिया भर की घोषणाएं की, झूठ बोला और दिन मजे में बिताते गये। इधर, आपको आपके मूर्ख सलाहकार और चाटुकार घेरे रहे और उधर जनता समस्याओं से घिरती रही। आप तो देवकी मैया के कृष्ण की तर्ज पर आठवें पुत्र थे। श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना की और आपने लूट-खसोट और चाटुकारिता को प्रश्रय दिया। आपके राज में भ्रष्टाचार पर जीरो टोलरेंस की बात होती रही लेकिन भ्रष्टाचार में आकंठ घंसे लोग ऊंचे पद और सिंहासन पाते रहे। आपके राज में नेताओं, अफसरों दलालों और ठेकेदारों की चैकड़ी अट्हास कर रही है और जनता सिहर कर सिमट रही है।

खैरासैंण का अपना वो मटमैला सा घर याद है आपको। जिसके आंगन में आप खेले-कूदे। वो सूना चैक-आंगन और आपकी नीमदरी के दरवाजे पर मधुमक्खियों का छत्ता बता रहा है कि इन 1392 दिनों में भी खैरासैंण में कुछ नहीं बदला। वही भांय-भांय करता सन्नाटा और ग्रामीणों के चेहरों पर निराशा। खैरासैंण के निकट दंगलेश्वर महादेव का मंदिर याद है न आपको चचा। वो मंदिर सबको कुछ न कुछ देता है आपको तो सबकुछ दे दिया। उस मंदिर को आपने क्या दिया? सोचो जरा?

सतपुली का वो कालेज जहां से आपने दुनियादारी की सीख पायी, वो भी बदहाल है। नयार नदी जिसमें आपने झील बनाने के सपने दिखाए हैं, वहां कुछ नहीं बदला। आपके घर की सड़क जो पिछले कुछ माह तक बदहाल थी उस पर आज भी पैंबंद लगाने की जरूरत है।
वो पलायन आयोग जो आपने बनाया था और पौड़ी में कार्यालय। लेकिन नेगीजी दून से बाहर निकले ही नहीं। काश, वो आपके गांव जाते। वो उन प्रवासी युवाओं का दर्द समझते जो पहाड़ में तो रहना चाहते हैं लेकिन भूख ओर भविष्य की चिन्ता उन्हें मैदानों की ओर ले जा रही है। उनको कितना स्वरोजगार या रोजगार मिला? जमीनी हकीकत का पता लगाते? प्रसव पीड़ा से ग्रसित दम तोड़ती उस महिला की सोचते जिसने एक नया जीवन देने की चाह में अपना जीवन न्योछावर कर दिया क्योंकि उसे समय पर दवा और डाक्टर नहंी मिला। आपके गांव से आठ किलोमीटर की दूरी पर मलेठी में एक वृद्धाश्रम बन रहा है, जहां वो वृद्ध रहेंगे जिनके अपने परदेश में होंगे। पर ऐसी नौबत आई क्यों? क्योंकि आप और आपकी सरकार ने गांव के आदमी के लिए कुछ किया ही नहीं। न गांव बसे और न पलायन रुका। फिर कहां हुआ विकास? किसका हुआ विकास? कहां आई खुशहाली? सोचो जरा।

[वरिष्‍ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]

 

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