Tuesday, May 14, 2024
BREAKING
जवाली, फ़तेहपुर और इंदौरा में आनंद शर्मा का विशाल जनसमूह ने किया स्वागत विनोद सुल्तानपुरी के नामांकन में शामिल हुए सीएम, भाजपा पर बरसे नशेड़ी पति से त्रस्‍त महिला ने रॉड से पीट कर मौत के घाट उतारा जसवां परागपुर से था बिकाऊ विधायकों का चौकीदार, होशियार के खोलूंगा चिट्ठे : सुक्‍खू काँगड़ा को ऐसे सांसद की ज़रूरत है, जिसकी आवाज पूरा देश सुने: मुख्यमंत्री बेईमानों का कभी साथ नहीं देती देवभूमि की जनता : मुख्यमंत्री पांचवीं बार 5 लाख वोटों से जीतेंगे अनुराग ठाकुर : जयराम ठाकुर छह दागियों ने स्वीकार किया अपना गुनाह, भाजपा ने रुकवाई महिलाओं की पेंशन: कांग्रेस  मुख्यमंत्री की तानाशाही से उनके ज़िले के तीन विधायक पार्टी छोड़ गये: जयराम ठाकुर सत्ता में रहते पांच साल जयराम ने की हमीरपुर की अनदेखीः सीएम
 

आखिर मुख्यमंत्री बीच में ही क्यों बदले जाते हैं?

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Monday, September 13, 2021 17:27 PM IST
आखिर मुख्यमंत्री बीच में ही क्यों बदले जाते हैं?

-डॉ. वेदप्रताप वैदिक

भारत की दोनों प्रमुख अखिल भारतीय पार्टियों भाजपा और कांग्रेस में आजकल जोर की उठापटक चल रही है। यदि कांग्रेस में पंजाब और छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्रियों के बदलने की अफवाहें जोर पकड़ रही हैं तो पिछले छह माह में भाजपा ने अपने पाँच मुख्यमंत्री बदल दिए हैं। ताजा बदलाव गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी का है।

इसके पहले असम में सर्वानंद सोनोवाल, कर्नाटक में बीएस येदियुरप्पा और उत्तराखंड में त्रिवेंद्रसिंह रावत और तीरथसिंह रावत को बदल दिया गया। असम के अलावा इन सभी राज्यों में जल्दी ही चुनाव होनेवाले हैं। चुनावों की तैयारी साल-डेढ़ साल पहले से होने लगती है।

 

यहां असली सवाल है कि पुराने मुख्यमंत्री को चलता कर देने और नए मुख्यमंत्री को ले आने का प्रयोजन क्या होता है? यह प्रायः तभी होता है, जब पार्टी के शीर्ष नेतृत्व को ऐसा लगने लगता है कि जनता के बीच उसकी दाल पतली हो रही है। यदि चुनाव जीतना है तो अन्य पैंतरे तो हैं ही, जरुरी यह भी है कि जनता के सामने कोई ताजा चेहरा भी लाया जाए। अब जैन रूपाणी की जगह कोई पटेल चेहरे की तलाश क्यों हो रही है? क्योंकि गुजरात में पटेलों के 13 प्रतिशत थोक वोट की आमदनी के लिए भाजपा की लार टपक रही है।

 

राष्ट्रवादी भाजपा पार्टी की चिंताएं भी वही हैं, जो देश की अन्य जातिवादी और सांप्रदायिक पार्टियों की होती हैं। उसे भी जातियों के थोक वोट चाहिए। भारतीय लोकतंत्र को जातिवाद के इस भूत से कब मुक्ति मिलेगी, कहा नहीं जा सकता। 2017 के चुनाव में गुजरात में मिली कम सीटों ने भाजपा के कान पहले से खड़े कर रखे थे। यदि अगले चुनाव में भाजपा के हाथ से गुजरात खिसक गया तो दिल्ली को बचाना मुश्किल हो सकता है। मुख्यमंत्रियों को तड़ातड़ बदलने का एक अदृश्य अर्थ यह भी है कि हमारी अखिल भारतीय पार्टियों के शीर्ष नेतृत्व का विश्वास खुद पर से हिल रहा है। उन्हें लग रहा है कि वे इन राज्यों का चुनाव अपने दम पर शायद जीत नहीं पाएंगे। यदि उन्हें खुद पर आत्म-विश्वास होता तो कोई मुख्यमंत्री किसी भी जाति का हो और उसका कृतित्व बहुत प्रभावशाली न भी रहा हो तो भी वे अपने दम पर चुनाव जीतने का माद्दा रख सकते हैं।

 

फिलहाल, नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की तुलना, कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व से नहीं की जा सकती। यह एक अकाट्य तथ्य है कि मोदी को हिला सके, ऐसा कोई नेता आज भी देश में नहीं है लेकिन यदि कोई खुद ही हिला हुआ महसूस करे तो आप क्या कर सकते हैं। कोरोना की महामारी, लंगड़ाती अर्थ-व्यवस्था, अफगानिस्तान पर हमारी अकर्मण्यता और विदेश नीति के मामले में अमेरिका का अंधानुकरण यह बताता है कि मोदी सरकार से राष्ट्र को जो अपेक्षाएं थीं वे अभी पूरी होनी बाकी हैं।

(लेखक देश के प्रमुख स्‍तंभकारों में से हैं)

VIDEO POST

View All Videos
X