Friday, April 26, 2024
BREAKING
खुलकर सामने आ रहे हैं कांग्रेस के आमजन विरोधी इरादे : जयराम ठाकुर कांगड़ा बाईपास पर राजीव की फूड वैन देख रुके सीएम सुक्‍खू शिमला में चार साल की मासूम से दुष्‍कर्म चंबा फ़र्स्ट के लिए मोदी ने चंबा को आकांक्षी ज़िला बनाया : जयराम ठाकुर बिकाऊ विधायक धनबल से नहीं जीत सकते उपचुनाव : कांग्रेस तीन हजार रिश्‍वत लेते रंगे हाथों दबोचा एएसआई 23 वर्षीय युवती ने फंदा लगाकर की आत्‍महत्‍या सरकार उठाएगी पीड़ित बिटिया के इलाज का पूरा खर्च: मुख्यमंत्री युवक ने दिनदिहाड़े छात्रा पर किए दराट के एक दर्जन वार, हालत गंभीर पीजीआई रेफर राज्य सरकार के प्रयासों से शिंकुला टनल को मिली एफसीए क्लीयरेंस: सीएम
 

कठिन कोरोना काल में थोड़ा डिजिटल हो जाएं!

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Tuesday, May 25, 2021 19:20 PM IST
कठिन कोरोना काल में थोड़ा डिजिटल हो जाएं!

आनलाइन कक्षाओं के लिए कितनी सहज है नई पीढ़ी

-प्रो.संजय द्विवेदी

यह डिजिटल समय है, जहां सूचनाएं, संवेदनाएं, सपने-आकांक्षाएं, जिंदगी और यहां तक कि कक्षाएं भी डिजिटल हैं। इस कठिन कोरोना काल ने भारत को असल में डिजिटल इंडिया बना दिया है। जिंदगी का हर हिस्सा तेजी से डिजिटल हुआ है। बचा-खुचा होने को आतुर है। कोरोना काल ने सही मायने में भारत को डिजिटल इंडिया बना दिया है। पढ़ाई-लिखाई के क्षेत्र में इसका व्यापक असर हुआ है। प्राइमरी से लेकर उच्च शिक्षा संस्थानों ने आनलाइन कक्षाओं का सहारा लेकर नए प्रतिमान रचे हैं। आने वाले समय में यह चलन कितना प्रभावी होगा यह तो नहीं कहा जा सकता, किंतु संकटकाल में संवाद, शिक्षा और सहकार्य के तमाम अवसर इस माध्यम से प्रकट हुए हैं।

आनलाइन कक्षाओं की मानसिक बाधा
हमारे जैसे पारंपरिक सोच के शिक्षकों में आनलाइन शिक्षा को लेकर हिचक है, वह टूटी नहीं है। बार-बार कहा जा रहा कि आनलाइन कक्षाएं वास्तविक कक्षाओं का विकल्प नहीं हो सकतीं, क्योंकि एक शिक्षक की उपस्थिति में कुछ सीखना और उसकी वर्चुअल उपस्थिति में कुछ सीखना दोनों दो अलग-अलग परिस्थितियां हैं। संभव है कि हमारा अभ्यास वास्तविक कक्षाओं का है और हमारा मन और दिमाग इसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है कि आनलाइन कक्षाएं भी सफल हो सकती हैं। दिमाग की कंडीशनिंग (अनुकूलन) कुछ ऐसी हुई है कि हम वर्चुअल कक्षाओं को वह महत्ता देने के लिए तैयार नहीं है जो वास्तविक कक्षाओं को देते हैं। फिर भी यह मानना होगा कि आभासी दुनिया आज तमाम क्षेत्रों में वास्तविक दुनिया को मात दे रही है। हमारे निजी जीवन में हम जिस तरह डिजिटल हुए हैं, क्या वह पहले संभव दिखता था। हमारी बैंकिग, हमारे बाजार, हमारा खानपान, तमाम तरह के बिल भरने की प्रक्रिया, टिकिटिंग और ट्रैवलिंग के इंतजाम क्या कभी आनलाइन थे। पर समय ने सब संभव किया है। आज एटीएम जरूरत है तथा आनलाइन टिकट वास्तविकता। हमारी तमाम जरूरतें आज आनलाइन ही चल रही हैं। ऐसे में यह कहना बहुत गैरजरूरी नहीं है कि आनलाइन माध्यम ने संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। आनलाइन शिक्षा के माध्यम को इस कोरोना संकट ने मजबूत कर दिया है।

सहज संवाद से जुड़ती दुनिया
बावजूद इसके हम देखते हैं तो आनलाइन कक्षाओं ने संसाधनों का एक नया आकाश रच दिया है। जो व्यक्ति आपकी किसी क्लास, किसी आयोजन, कार्यशाला के लिए दो घंटे का समय लेकर नहीं आ सकता, यात्रा में लगने वाला वक्त नहीं दे सकता। वही व्यक्ति हमें आसानी से उपलब्ध हो जाता है। क्योंकि उसे पता है कि उसे अपने घर या ऑफिस से ही यह संवाद करना है और इसके लिए उसे कुछ अतिरिक्त करने की जरुरत नहीं है। यह अपने आप में बहुत गजब समय है। जब मानव संसाधन के स्मार्ट इस्तेमाल के तरीके हमें मिले हैं। आप दिल्ली, चेन्नई या भोपाल में होते हुए भी विदेश के किसी देश में बैठे व्यक्ति को अपनी आनलाइन कक्षा में उपलब्ध करा सकते हैं। इससे शिक्षण में विविधता और नए अनुभवों का सामंजस्य भी संभव हुआ है। इस शिक्षा का ना तो भूगोल है, न ही समय सीमा। इन लॉकडाउन के दिनों में अनेक मित्रों ने कई विषयों में आनलाइन कोर्स कर अपने को ज्ञानसमृद्ध किया है। भोपाल का एक विश्वविद्यालय सुदूर अरुणाचल विश्वविद्यालय के विद्वान मित्रों के साथ एक साझा संगोष्ठी आनलाइन आयोजित कर लेता है। यह किसी विदेशी विश्वविद्यालय के साथ भी संभव है। यात्राओं में होने वाले खर्च, आयोजनों में होने वाले खर्च, खानपान के खर्च जोड़ें तो ऐसी संगोष्ठियां कितनी महंगी हैं। बावजूद इसके किसी व्यक्ति को साक्षात सुनना और देखना। साक्षात संवाद करना और वर्चुअल माध्यम से उपस्थित होना। इसमें अंतर है। यह रहेगा भी। बावजूद इसके जैसे-जैसे हम इस माध्यम के साथ हम सहज होते जाएंगे, यह माध्यम भी वही सुख देगा जो किसी की भौतिक उपस्थिति देती है। भावनात्मक स्तर पर इसकी तुलना सिनेमा से की जा सकती है। यह सिनेमा-सा सुख है। अच्छा सिनेमा हमें भावनात्मक स्तर पर जोड़ लेता है। इसी तरह अच्छा संवाद भी हमें जोड़ता है भले ही वह वर्चुअल क्यों न हो। जबकि बोरिंग संवाद भले ही हमारे सामने हो रहे हों, हम हाल की पहली पंक्ति में बैठकर भी सोने लगते हैं या बोरियत का अनुभव करने लगते हैं।

हम विचार करें तो शिक्षा का असल काम है, विषय में रूचि पैदा करना। अच्छा शिक्षक वही है जो आपमें जानने की भूख जगा दे। इसलिए प्रेरित करने का काम ही हमारी कक्षाएं करती हैं। पुरानी पीढ़ी शायद इतनी जल्दी यह स्वीकार न करे, किंतु नई पीढ़ी तो वर्चुअल माध्यमों के साथ ही ज्यादा सहज है। हमें दुकान में जाकर सैकड़ों चीजें में से कुछ चीजें देखकर, छूकर, मोलभाव करके खरीदने की आदत है। नई पीढ़ी आनलाइन शापिंग में सहज है। ऐसे अनेक उदाहरण हैं जिनमें नई पीढ़ी की चपलता, सहजता देखते ही बनती है। शायद हम जैसे शिक्षकों को इस माध्यम के साथ वह सहजता न महसूस हो रही हो, संभव है कि आपकी वर्चुअल कक्षा में उपस्थित छात्र या छात्रा उसके साथ ज्यादा सहज हों। हमारा मन यह स्वीकारने को तैयार नहीं है कि कोई स्क्रीन हमारी भौतिक उपस्थिति से ज्यादा ताकतवर हो सकती है। किंतु आवश्यक्ता और मजबूरियां हमें नए विकल्पों पर विचार के लिए बाध्य करती हैं।

यहां नहीं डूबता सूरज
इस कठिन समय में आनलाइन शिक्षा आज की एक वास्तविकता है, जिसे हम माने या न मानें स्वीकारना पड़ेगा। कोरोना के संकट ने हमारी पूरी शिक्षा व्यवस्था के सामने कई सवाल खड़े किए हैं। जिसमें क्लास रूम टीचिंग की प्रासंगिकता, उसकी रोचकता और जरुरत बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है। ज्ञान को रोचक अंदाज में प्रस्तुत करने और सहज संवाद की चुनौती भी सामने है। आज का विद्यार्थी नए वर्चुअल माध्यमों के साथ सहज है, उसने डिजिटल को स्वीकार कर लिया है। इसलिए डिजिटल माध्यमों के साथ सहज संबंध बनाना शिक्षकों की भी जिम्मेदारी है। कक्षा के अलावा असाइनमेंट, नोट्स और अन्य शैक्षिक गतिविधियों के लिए हम पहले से ही डिजिटल थे। अब कक्षाओं का डिजिटल होना भी एक सच्चाई है। संवाद, वार्तालाप, कार्यशालाओं, संगोष्ठियों को डिजिटल माध्यमों पर करना संभव हुआ है। इसे ज्यादा सरोकारी, ज्यादा प्रभावशाली बनाने की विधियां निरंतर खोजी जा रही हैं। इस दिशा में सफलता भी मिल रही है। गूगल मीट, जूम, जियो मीट, स्काइप जैसे मंच आज की डिजिटल बैठकों के सभागार हैं। जहां निरंतर सभाएं हो रही हैं, विमर्श निरंतर है और संवाद 24ग7 है। कहते हैं डिजिटल मीडिया का सूरज कभी नहीं डूबता। वह सदैव है, सक्रिय है और चैतन्य भी। माध्यम की यही शक्ति इसे खास बनाती है। यह बताती है कि प्रकृति सदैव परिर्वतनशील है और कुछ भी स्थायी नहीं है। मनुष्य ने अपनी चेतना का विस्तार करते हुए नित नई चीजें विकसित की हैं। जिससे उसे सुख मिले, निरंतर संवाद और जीवन में सहजता आए। डिजिटल मीडिया भी मनुष्य की इसी चेतना का विस्तार है। इसके आगे भी वह नए-नए रूप लेकर आता रहेगा। नया और नया और नया। न्यू मीडिया के आगे भी कोई और नया मीडिया है। उस सबसे नए की प्रतीक्षा में आइए कोरोना काल में थोड़ा डिजिटल हो जाएं। कोरोना काल के समापन के बाद जिंदगी और शिक्षा के माध्यम क्या वैसे ही रहेंगे यह सोचना भूल होगी। दुनिया ने हमेशा नवाचारों को स्वीकारा है, इस नवाचार के तमाम हिस्से हमारी जिंदगी में शामिल हो जाएंगे, इसमें दो राय नहीं है।

(लेखक भारतीय जनसंचार संस्थान, नई दिल्ली के महानिदेशक हैं)

VIDEO POST

View All Videos
X