(पुण्यतिथि – 30 अप्रैल पर विशेष)
पचास से लेकर सत्तर के सालों में हिंदी सिनेमा में जब भी मां की ज़रूरत पड़ी तो सबसे पहली पसंद अचला सचदेव रहीं। वजह यह रही कि उनका हिंदी, उर्दू और अंग्रेज़ी जुबान पर पूर्ण अधिकार था। पंजाबी पृष्ठभूमि के किरदारों में तो वो खूब फब्ती थीं। याद करें बीआर चोपड़ा की वक़्त (1965) के लाला केदारनाथ (बलराज साहनी) की पत्नी लक्ष्मी अचला और उन पर फ़िल्माया गया ये गाना- ओ मेरी ज़ोहरा ज़बीं… अपनी खूबसूरती की तारीफ़ सुन शर्म से लाल हो गयीं अचला के लजाये चेहरे पर आई दमक देखते ही बनती थी। वो ज़ोहरा ज़बीं कहलाने लगीं, खूबसूरती, सादगी और पवित्रता का पर्याय। यश चोपड़ा की दिल वाले दुल्हनिया ले जाएंगे (1995) में जब इस गाने को दोहराया गया तो काजोल की दादी बनी अचला इसे देख रही थीं। इसका ज़बरदस्त असर देखिये कि आज 55 साल बाद भी इस गाने को जब-तब गुनगुना कर पतिगण अपनी पत्नियों को रिझाते हैं।
1920 में पेशावर में जन्मीं अचला रेडियो सिंगर हुआ करती थीं। फ़िल्मी सफ़र शुरू करने से पहले ही एक असिस्टेंट डायरेक्टर ज्ञान सचदेव से शादी कर ली। उनकी पहली फिल्म थी-फैशनेबुल वाइफ (1938)। उसके बाद उन्होंने तक़रीबन ढाई सौ फ़िल्में की। वो हीरोइन कभी नहीं रहीं। कभी मां, तो कभी दादी। हालांकि उनकी अदाकारी की गहराई बहुत दूर तक थी लेकिन फ़िल्मकार ज़्यादातर उनसे सहृदय मां के किरदार ही कराते रहे। यही वजह रही कि उनका नाम ज़ुबां पर आते ही, सहृदय मां...
विस्तार से पढ़ने के लिए निम्न path का प्रयोग करें...
https://bit.ly/3tUIKiq
पूजा-अर्चना:
सीएम ने मां बगलामुखी मंदिर में शीश नवायाअंशदान:
पुलिस के ऑर्केस्ट्रा हार्मनी ऑफ द पाइंस की टीम ने सुख आश्रय कोष में दिए दो लाखशीश नवाया:
सीएम ने तारा देवी मंदिर में की पूजा-अर्चनाभेंटवार्ता:
मुख्यमंत्री से मिले पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्माभेंटवार्ता:
मुख्यमंत्री ने प्रदेश कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला और एआईसीसी प्रदेश सचिव तेजिंदर पाल सिंह बिट्टू से की भेंट