सामयिक सिनेमा – दिन चले न रात चले
“तुम्हारी राजनीति इतनी कमज़ोर नहीं होनी चाहिए कि इक्के-दुक्के बंदूकधारी उसका सफरनामा तय करे। हर सफरनामे का एक अंत होता है। आपको भी अब कोई नई राह देखनी चाहिए, नया सफर…”।
फ़िल्म दिन चले न रात चले का यह संदेश, हमारे समाज में व्याप्त बेचैनी और बौखलाहट, बैद्धिक विमर्श और सादा देहाती जीवन की कुंठाओं को एक साथ शांत कर देता है। इससे आगे बस नई सोच, नई राह और मंज़िल है।
भारतीय फ़िल्म और टेलीविज़न संस्थान पुणे के पूर्व निदेशक, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी त्रिपुरारी शरण द्वारा लिखित और निर्देशित यह फिल्म मजरूह सुल्तानपुरी की ग़ज़ल “जला के मिशअल-ए-जांह मजुनूं- सिफ़ात चले, जो घर को आग लगाए हमारे साथ चले” की पैरोडी में ढली एक निहायत ख़ूबसूरत कविता जान पड़ती है। जो फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ के अंदाज़ में “रक्से-मय तेज़ करो, साज़ की लय तेज़ करो, सू-ए-मैख़ाना सफ़ीराने-हरम आते हैं” शुरू होती है और दर्शक के दिल-वो-दिमाग़ पर कोलाहल की तरहछा जाती है।
फिल्म की कहानी और उसका संदेश इतना ज़ोरदार है कि ड्रैमेटिक टूल के तौर पर क़ातिल धुमल सिंह के हाथ पर बना टैटू (गोदना) ही समूची पटकथा में एक्शन-रिएक्शन और आरोह-अवरोह या उद्दीपक यानी स्टिम्युलन्ट (Stimulant) बन जाता है। और इसके कंट्रास्ट टूल्स पूरी शिद्दत के साथ स्टोरी लाइन, कैरेक्टर ग्रोथ, इवेंट ग्रोथ, इंस्टीट्यूशन्स और फ्यूचर एक्शन को अंत तक बांधकर रखते हैं। और अंत में यही ड्रैमेटिक टूल फिल्म को क्लाइमेक्स पर पहुंचाता है।
विस्तार से पढ़ने के लिए निम्न path का प्रयोग करें...
https://bit.ly/3yJt58D
पूजा-अर्चना:
सीएम ने मां बगलामुखी मंदिर में शीश नवायाअंशदान:
पुलिस के ऑर्केस्ट्रा हार्मनी ऑफ द पाइंस की टीम ने सुख आश्रय कोष में दिए दो लाखशीश नवाया:
सीएम ने तारा देवी मंदिर में की पूजा-अर्चनाभेंटवार्ता:
मुख्यमंत्री से मिले पूर्व केंद्रीय मंत्री आनंद शर्माभेंटवार्ता:
मुख्यमंत्री ने प्रदेश कांग्रेस प्रभारी राजीव शुक्ला और एआईसीसी प्रदेश सचिव तेजिंदर पाल सिंह बिट्टू से की भेंट