कांगड़ा/शिमला, 28 नवंबर। कड़ी मेहनत और लग्न से नीट उत्तीर्ण करके डॉक्टर बनने का सपना देखने वाली दिव्यांग छात्रा के साथ डॉ. राजेंद्र प्रसाद मेडिकल कॉलेज टांडा ने बड़ा छल किया है। कांगड़ा जिले की तहसील बड़ोह के गांव सरोत्री की निकिता चौधरी को तय नियमों के तहत मिले विकलांगता प्रमाण पत्र को मानने से इनकार करते हुए उसे एमबीबीएस में प्रवेश नहीं दिया गया।
इस दिव्यांग छात्रा के साथ किए गए अन्याय के खिलाफ उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष और राज्य विकलांगता सलाहकार बोर्ड के विशेषज्ञ सदस्य प्रो. अजय श्रीवास्तव ने आवाज उठाई है। उन्होंने इस बारे में प्रदेश के राज्यपाल एवं अटल मेडिकल विश्वविद्यालय मंडी के कुलाधिपति विश्वनाथ आर्लेकर को पत्र लिखकर निकिता के लिए न्याय गी गुहार लगाई है।
मिली जानकारी के अनुसार व्हीलचेयर के सहारे चलने वाली निकिता चौधरी ने इस वर्ष नीट की परीक्षा उत्तीर्ण की थी। उसे कांगड़ा के मेडिकल बोर्ड ने 75% विकलांगता का प्रमाण पत्र दिया था। इस आधार पर मिली मेरिट में राज्य कोटे की एमबीबीएस की सीट टांडा मेडिकल कॉलेज में मिलनी थी। हालांकि नीट की शर्तों के अनुसार दिव्यांग उम्मीदवारों को उसके द्वारा अधिकृत मेडिकल बोर्ड से विकलांगता का प्रमाणीकरण कराना आवश्यक है।
इसी के चलते निकिता ने नीट अधिकृत चंडीगढ़ के सेक्टर 32 के राजकीय मेडिकल कॉलेज से विकलांगता का प्रमाण पत्र लिया जिसमें उसे 78% विकलांगता बताई गई। हालांकि नीट के नियमों के अनुसार 80% तक विकलांगता वाले पात्र अभ्यर्थी एमबीबीएस में प्रवेश के पात्र हैं। इस आधार पर उसका प्रवेश टांडा मेडिकल कॉलेज में तय था, मगर टांडा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने नीट के नियमों को धत्ता बताते हुए कथिततौर पर निकिता को पात्रता से बाहर करने के लिए अपना ही मेडिकल बोर्ड बनाया जिसने उसकी विकलांगता 90% कर दी। इस दिव्यांग छात्रा को यह कहते हुए एमबीबीएस प्रवेश से बाहर कर दिया गया कि वह पढ़ाई के दौरान व्हीलचेयर से कैसे चल पाएगी।
यह भी बताया जा रहा है कि जहां जिला प्रशासन कांगड़ा के मेडिकल बोर्ड और चंडीगढ़ के मेडिकल कॉलेज के अधिकृत बोर्ड ने उसकी विकलांगता को ‘प्रोग्रेसिव’ नहीं बताया था। वहीं टांडा मेडिकल कॉलेज के मेडिकल बोर्ड ने अपने प्रमाण पत्र में उसकी बीमारी को प्रोग्रेसिव बताते हुए इसके भविष्य में और भी बढ़ने की बात लिख डाली।
प्रो. अजय श्रीवास्तव ने राज्यपाल को लिखे पत्र में बताया कि अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी और टांडा मेडिकल कॉलेज द्वारा दोबारा उसका मेडिकल किया जाना बिल्कुल गैरकानूनी है क्योंकि यह मेडिकल कॉलेज विकलांगता प्रमाण पत्र बनाने के लिए नीट द्वारा अधिकृत ही नहीं किया गया है। मेडिकल कॉलेज को नीट द्वारा अधिकृत मेडिकल बोर्ड वाले विकलांगता प्रमाण पत्र को ही स्वीकार करना चाहिए था।
इस तरह टांडा मेडिकल कॉलेज प्रबंधन ने एक दिव्यांग मेधावी छात्रा के साथ अन्याय किया। ज्ञात रहे कि मेधावी निकिता चौधरी के दसवीं में 93% और 12वीं की परीक्षा में 96% अंक हासिल किए थे। जिस कॉलेज में वह डॉक्टर बनने का सपना देख रही थी उसी के प्रबंधन ने गैरकानूनी हथकंडे अपना कर उसके सपने को तोड़ दिया। उन्होंने कहा कि दिव्यांगों को बाधा रहित वातावरण देना विकलांगजन अधिनियम 2016 के अंतर्गत राज्य सरकार की जिम्मेवारी है। ऐसे में बाधा रहित वातावरण मिलने पर उसकी विकलांगता पढ़ाई में रुकावट नहीं बन सकती। सुप्रीम कोर्ट भी इस तरह के मामलों में कई फैसले किए हैं।
उन्होंने मांग की है कि अटल मेडिकल यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति होने के नाते राज्यपाल इस मामले में हस्तक्षेप करके मेधावी छात्रा को उसका हक दिलवाए और उसका डॉक्टर बनने का सपना बर्बाद होने से रोके। इस संबंध में टीएमसी प्रबंधन का पक्ष नहीं मिल सका है।
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