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कुड़-कुड़ करदा कुकड़ आया...

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Tuesday, October 27, 2020 23:41 PM IST
कुड़-कुड़ करदा कुकड़ आया...

बिलासपुर, 27 अक्‍टूबर। हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले में भाषा एवं संस्कृति विभाग कार्यालय ने आज संस्कृति भवन बिलासपुर के बैठक कक्ष में पूर्ण राज्यत्व की 50वीं जयन्ती समारोह के उपलक्ष्य में पहाड़ी सप्ताह के अन्तर्गत जिला स्तरीय कवि लेखक गोष्ठी एवं कवि सम्मेलन का आयोजन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता जिला भाषा अधिकारी नीलम चन्देल ने की, जबकि मंच का संचालन सुरेन्द्र मिन्हास ने किया। कार्यक्रम का शुभारम्भ साहित्यकारों द्वारा मां सरस्वती का दीप प्रज्ज्वलित कर किया गया। जीतराम सुमन व बन्दना ठाकुर ने मां सरस्वती की वंदना प्रस्तुत की। आयोजन दो सत्रों में आयोजित किया गया। प्रथम सत्र में पहाड़ी बोलियों /स्थानीय बोली पर चर्चा-परिचर्चा की गई जिसमें सभी साहित्यकारों ने अपने मत एवं सुझाव दिए।

दूसरे सत्र में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया जिसमें नरैणु राम हितैषी ने -कुड़-कुड़ करदा कुकड़ आया, झांग देई ने सबणा जो जगाया। बुद्धि सिंह चन्देल ने - फौजीए री लाड़ी सोचां थी बचारी, हऊं अनपढ़ मरी किस्मत माड़ी। अमरनाथ धीमान ने घाह बी बड्डी लैणा, पाणी भी भरी लैणा, घरा रे कम्म कदी नी मुकणे, मुक्की जाणी जिन्दगी म्हारी। अरूण डोगरा रितू ने- जे हऊं राती दी राणी हुन्दी, मेरे सजना तेरी मेरी किन्नी प्रीत पुराणी हुंदी। लश्करी राम ने - भगं, तम्बाखू , बीड़ी, गुटखा,शराब जहरी नाग। निखिल चैधरी ने - मोहब्बत की भाषा हिन्दी। प्रदीप गुप्ता ने - अज्जी तक हालात शांत होए, मरूरा नी पाकिस्ताने दा कमंड (घमण्ड) तिन्ने जरूर डसना इक दिन, हया से जैरीला सरप (सर्प) । डॉ अनेक राम सांख्यान ने -म्हारे परोहणे शीर्षक से रचना प्रस्तुत की पंक्तियां थीं- इक दा परौहणा हूंवा था सारे गांव दा परौहणा, सबी जो खुशाी हुंआं थी तांजे किसरी रे बी आंवा था परौहणा। विपिन चन्देल ने - सत्तां धारां रा देश म्हारा, सतलुज नदिया कण्डे देश म्हारा। जीतराम सुमन की रचना का शीर्षक था टैम लगेया जगाणे तिज्जो, पंक्तियां थी- जुल्म सैहदिया उमरां हुईयां पल-पल तेरा दिल दुखदा रोज, जेडा भी मिल्या से कातल ई मिल्या, जख्म दिला रा बद्दा रोज। हुसैन अली ने- तेरा औणा, तेरा जाणा, अखीरा चमकारा था, मन तड़फाणा होर तरसाणा, उमरा रोग लगाणा था। बन्दना ठाकुर ने ‘‘मैं शून्य पे सवार हूं, ना सूर्य मेरे साथ है, तो क्या नई ये बात है, वो शाम को था ढल गया, वो रात से था डर गया। सुशील पुण्डीर परिंदा ने ‘‘ कजो ग्लांदे ‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की, पंक्तियां थीं- कजो गलांदे पहाडियां री नी कोई रीस, सारी दुनिया देन्दी असां जो सीस । ललिता कश्यप ने ‘‘ खिन्द‘‘ शीर्षक से रचना प्रस्तुत की पंक्तियां थीं- अजकीा रे बच्चेयां जो पता नई क्या हुन्दा खिन्द-खन्दोलू, बैडड गददेयां पर सोणे बाल्यो पता नई, क्या हुन्दा मन्जा मन्जोलू। सुरेन्द्र मिन्हास ने -नी करगे जे बाहड़ बुटडा तां कई कुछ जम्मी जांन्दा, लम्ब, झिट, सलौड, घा बडदेयां मती करोपी ढ़ांदा। इन्द्र सिंह चन्देल ने पहाड़ी गीत ‘‘ बसां च आई ओ तेरी याद, फोटो रहीया तेरे कमरे प्रस्तुत किया।

अंत में जिला भाषा-संस्कृति अधिकारी ने सभी साहित्यकारों का आभार व्यक्त करते पहाड़ी सप्ताह के बारे में जानकारी तथा विभागीय गतिविधियों से भी साहित्यकारों को अवगत करवाया गया। उन्होंने आगे कहा कि विभाग हिन्दी, संस्कृत एवं पहाड़ी बोलियों के प्रचार-प्रसार के लिए सदैव प्रयासरत रहता है। हमें अपनी मातृभाषा एवं बोलियों को सर्वोपरि रखते हुए आगे बढ़ना चाहिए अपनी मूल जड़ों से जुड़े रहना चाहिए।

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