शिमला, 18 सितंबर। हिमाचल प्रदेश विधानसभा का मानसून सत्र आज प्रदेश में आपदा से हुए जानमाल के नुकसान और प्रभावितों को राहत पहुंचाने के हरसंभव प्रयास करने के संकल्प के साथ शुरू हुआ। वहीं आज विपक्ष ने हंगामा किया और सदन की कार्यवाही का बहिष्कार करते हुए सदन से वाहिर्गमन किया। वहीं मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने सदन में घोषणा की है कि केंद्र मदद दे या ना दे मगर उनकी सरकार 26 सितंबर को प्राकृतिक आपदा प्रभावितों के लिए प्रदेश सरकार विशेष राहत पैकेज की घोषणा करेंगे।
सोमवार को सदन की शुरुआत करते हुए विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि हिमाचल प्रदेश आपदा से जूझ रहा है। इससे निपटने को प्रदेश की जनता ने खूब सहयोग दिया है। उन्होंने बताया कि यह चौदहवीं विधानसभा का तीसरा सत्र है, जो 25 सितंबर तक चलेगा। इस बार सत्र में शनिवार को भी कामकाज होगा और कुल सात बैठकें होंगी। आज दिवंगत विधायक खूबराम को श्रद्धांजलि देते हुए सदन में शोकोद्गार प्रस्ताव प्रस्तुत किया गया। जयराम, आनी के विधायक लोकेंद्र कुमार ने भी चर्चा में भाग लिया। प्रदेश में आपदा से सैकड़ों लोगों की मृत्यु होने पर शोकोद्गार व्यक्त किया गया।
इस दौरान 2:20 बजे के करीब जब शोकोद्गार समाप्त हुआ और विस अध्यक्ष ने प्रश्नकाल की घोषणा की तो मगर विपक्ष ने सारा काम रोककर केवल आपदा पर चर्चा करने पर अड़ गया। भाजपा विधायकों राकेश जम्वाल, इंद्र सिंह, बलवीर सिंह वर्मा, विपिन सिंह परमार ने नियम 67 के तहत स्थगन प्रस्ताव दिया। इस पर विस अध्यक्ष ने कहा कि इस विषय पर नियम 102 में भी चर्चा के लिए नोटिस आया है। ऐसे में नियम 67 के बजाय इस नियम में पहले से ही चर्चा के लिए नोटिस को मंजूर किया जा चुका है। सदन में विपक्ष और सत्ता पक्ष के विधायकों में हल्की नोकझोंक भी हुई।
विस अध्यक्ष ने जब कहा कि प्रश्नकाल को शुरू किया जा रहा है। इस पर जयराम ने कहा कि एक ओर बोला जा रहा है कि सदी की सबसे बड़ी त्रासदी से प्रदेश गुजर रहा है। ऐसे में सारा काम रोककर इस पर चर्चा होनी चाहिए। यह आपदा नियमों की परिधि से हटकर है। संसदीय कार्यमंत्री हर्षवर्धन चौहान ने कहा कि यह विषय हटकर है। आपदा पर चर्चा लगी हुई है। पिछले कल ही इस बारे में पहले ही जयराम ठाकुर को बताया जा चुका है। उन्होंने कहा कि भाजपा का यह प्रस्ताव राजनीति से प्रेरित है। सरकार इस बारे में चिंतित है। ये लोग आधे घंटे भी इंतजार नहीं कर पा रहे हैं। नियम 102 में चर्चा करवाई जाए। उन्होंने कहा कि आपदा में अच्छे काम की तारीफ पूर्व सीएम शांता कुमार समेत नीति आयोग और विश्व बैंक ने की है।
विपक्ष स्थगन प्रस्ताव पर अड़ा हुआ है। इस बीच मुख्यमंत्री ने नियम 67 के बजाय नियम 102 में प्रस्ताव रखा और प्रश्नकाल को निलंबित किया गया। इस पर विपक्ष ने सदन में नारेबाजी शुरू कर दी। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने कहा कि इस आपदा में 441 लोगों की मृत्यु हो चुकी है। कुल्लू में लारजी प्रोजेक्ट को बहुत क्षति पहुंची है। प्रदेश के बिजली प्रोजेक्टों को 1000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है। मुख्यमंत्री के वक्तव्य के बीच विपक्ष ने वाकआउट कर दिया। विपक्ष के बाहर जाने के बाद सीएम ने कहा कि आपदा के वक्त भाजपा के लोग कह रहे थे कि मानसून सत्र बुलाया जाए। आज ये सत्र में गंभीर नहीं है। सरकार ने नियम 102 के तहत प्रस्ताव दिया। इन लोगों के प्रस्ताव को भी अटैच किया गया है। इन्हें चर्चा में भाग लेना चाहिए, मगर ये गंभीर नहीं हैं।
मुख्यमंत्री ने कहा कि आपदा प्रभावितों को राहत के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से भी मुलाकात की है। प्रदेश को एक राहत पैकेज की तुरंत आवश्यकता है। इससे पूर्व कभी ऐसी आपदा नहीं हुई। यह आपदा भुज भूकंप, केदारनाथ आपदा और जोशीमठ भूमि रिसाव से भी बड़ी है। इन्हीं की तर्ज पर हिमाचल की इस आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित किया जाना चाहिए। उन्होंने राहत कोष में बढ़चढ़ कर योगदान देने के लिए प्रदेशवासियों का धन्यवाद किया। साथ ही उन्होंने प्रदेश राहत कोष में मदद देने के लिए विभिन्न प्रदेश सरकारों का भी धन्यवाद किया। उन्होंने कहा कि भाजपा विधायकों ने तो एक महीने का वेतन अभी तक नहीं दिया है। जबकि बच्चों ने गुल्लक तोड़कर मदद की है।
मुख्यमंत्री ने सदन में घोषणा की कि प्राकृतिक आपदा प्रभावितों के लिए प्रदेश सरकार विशेष राहत पैकेज लाएगी। साथ ही उन्होंने सदन में आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का सरकारी संकल्प प्रस्तुत किया। मुख्यमंत्री ने विपक्षी विधायकों से भी संकल्प का समर्थन करने का आग्रह किया।
इस अवसर पर
नेता प्रतिपक्ष ने विधान सभा में मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ‘सुक्खू’ का जवाब देते हुए कहा कि सरकार आपदा राहत में पूरी तरह फेल रही है। लोगों को न तो त्वरित सहायता ही मिल पाई और नहीं बाद में अपेक्षित सहायता मिल रही है। आपदा में 439 लोगों की जान चली गई। उन्होंने सभीमृतकों को श्रद्धांजलि दी। नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि आपदा से निपटने के लिए सरकार की कोई तैयारी नहीं थी। सरकार द्वारा आपदा के पहले हाई लेवल मीटिंग तक नहीं हुई। जिसमें आपदा से निपटने की प्लानिंग हो सके। आपदा आने के बाद भी सरकार का क्या प्रबंधन रहा है, इसे पूरे प्रदेश ने देखा है। अभी भीबहुत से प्रभावित हैं जिन्हें आर्थिक सहायता तो दूर तिरपाल तक नहीं मिल पाया है। लोगों ने आपदा के समय में भी ख़ुद से ही तिरपाल ख़रीदे हैं। बस देश भर में घूम कर मुख्यमंत्री आपदा राहत के नाम पर मीडिया में झूठी वाहवाही लूट रहे हैं।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि सरकार कह रही है कि हम राहत का काम कर रहे हैं लेकिन सत्य यही है कि जिनके घर उजड़ गए, खेत बह गये, सरकार उन्हें तिरपाल तक नहीं दे पाई। सरकार ने एडवांस में तिरपाल तक नहीं ख़रीदा था। लोगों के पास गाह गये और और लोग तिरपाल के लिए लाइन में लगे हैं। पूरे दिन के इंतज़ार के बाद बताया जा रहा हैं कि तिरपाल नहीं हैं। सरकार ने इस प्रकार का आपदा प्रबंधन का काम किया है। सरकार को ज़मीनी हक़ीक़त के बारे में बात करनी होगी। हज़ारों लोग बेघर हैं। उनका दर्द अनसुना नहीं कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि सेब के सीजन में सड़कें बंद होने की वजह से सेब लोगों के घरों में सड़ गए। सरकार सड़कें समय से सही नहीं करवा पाई। जब किसी ने अपने सड़ते हुए सेब को फेंक दिया तो पुलिस उसे थाने में बुलाकर धमकाती है और सरकार उस पर एक लाख का जुर्माना लगा देती है।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि हिमाचल में छोटा-बड़ा, कच्चा-पक्का मकान सबके पास था। कोई भी बेघर नहीं था लेकिन इस आपदा की वजह से हज़ारों लोगों के घर चले गए। लोग बेघर हो गये। लोगों के खेत बह गये, बगीचे बह गए। लोग घर के बदले घर और ज़मीन के बदले ज़मीन की मांग कर रहे हैं। दो महीनें से ज़्यादा का समय हो गया लेकिन अभी तक सरकार के पास कोई ठोस योजना नहीं हैं। सरकार को पता नहीं है कि लोगों को घर के लिए कहां ज़मीन देनी है। खेत के लिए कहां ज़मीन देनी हैं। सरकार के पास इन सवालों के कोई जवाब नहीं हैं।
नेता प्रतिपक्ष ने कहा कि प्राकृतिक आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कोई प्रावधान नहीं है। राज्य सरकार लोक सभा चुनाव नज़दीक आते देखकर केंद्र सरकार के ऊपर सारा दोष मढ़ना चाहती है। उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हो पाएगा। प्रदेश के लोग सब जानते हैं। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने भरपूर मदद की है। आगे भी मदद करेगी। केंद्र सरकार ने प्रदेश का सहयोग करने से मना नहीं किया है। राज्य सरकार ने रिपोर्ट्स भेजी है। केंद्र सरकार की टीमें आकर नुक़सान का आँकलन करके गई है। आपदा प्रबंधन का जो पैसा नवम्बर-दिसंबर तक आता है। वह पैसा अगस्त में ही आ गया है।
नेता प्रतिपक्ष ने मुख्यमंत्री ने कहा कि हर काम के लिए केंद्र सरकार पर दोषारोपण कर रही है, लेकिन ख़ुद क्या किया है यह नहीं बता रही है। अगर सब कुछ केंद्र सरकार को करना है तो राज्य सरकार का क्या काम है। उन्होंने कहा कि आपदा राहत के नाम पर केंद्र से आये पैसे को सरकार के अधिकारी और जनप्रतिनिधि नहीं बल्कि कांग्रेस के नेताओं के बेटे-बेटियां और पत्नी बांट रहे हैं। यह कैसी व्यवस्था है। जयराम ठाकुर ने कहा कि प्रदेश में पहली बार ऐसा हुआ जब लोगों ने ख़ुद चंदा इकट्ठा करके सड़के सही करवाई। क्या यही व्यवस्था परिवर्तन है, जिसकी बात मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह ‘सुक्खू’ जी कर रहे थे।
वहीं मुख्यमंत्री ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष जयराम लगता है तैयारी करके नहीं आए हैं, अगर केंद्र से मदद आई है तो पेपर सदन के पटल पर रखें। आपने किस चीज की मदद की है। केंद्र सरकार ने आपके वक्त का पैसा दिया है। इन्होंने एक किस्त एडवांस में दी। क्या हमें केदारनाथ की तर्ज पर विशेष राहत पैकेज मिला है। सुक्खू ने यह बात जयराम ठाकुर के यह कहने पर कही कि वह दिल्ली गए और केंद्र से मदद मिल रही है। सुक्खू ने कहा जयराम हमारे साथ दिल्ली चलें।
इस पर जयराम बोले कि किसी आपदा को राष्ट्रीय आपदा घोषित करने का कानूनी प्रावधान ही नहीं है। इस शब्द में उलझाने की ज़रूरत नहीं है। अनुपातिक दृष्टि से देखें। ज्यादा मदद मिली है। यूपीए के वक्त में कितनी मदद मिली है, इसे देखें। केंद्र से और मदद का मामला उठाया गया है। निचले स्तर पर पैसा नहीं मिल रहा है। पात्र लोगों को नहीं मिल रहा है। हमारा पुराना आदमी है, यह कहकर मदद दी जा रही है। प्रस्ताव में अगर संशोधन करते हैं। हम इसके साथ हैं।
मुख्यंमत्री ने कहा कि 2700 करोड़ रुपये की सड़कें मंजूर करने का जो मामला है। इन्हें तीन महीने देरी करवाई गई। इन सड़कों को कौन रुकवा रहा था। इसकी भी जानकारी लें। जैसा कि विक्रमादित्य सिंह ने कहा। केंद्रीय मंत्री गडकरी ने जो कहा - उसमें से अभी तक कुछ नहीं आया है। 10 करोड़ राज्य सरकार ने खुद एनएच के लिए दिए हैं।
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