नई दिल्ली, 29 अगस्त। स्वच्छता के क्षेत्र में देश के विभिन्न स्थानों पर हो रहे अभिनव प्रयोगों की सराहना करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को देशवासियों से अपील की कि वे स्वच्छ भारत अभियान के संकल्प को कभी भी मंद ना पड़ने दें। आकाशवाणी के मासिक रेडियो कार्यक्रम ‘मन की बात’ की ताजा कड़ी में अपने विचार साझा करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि कोरोना महामारी के कालखंड में स्वच्छता के विषय में जितनी बातें करनी चाहिए थी, उसमें कुछ कमी आ गई थी। उन्होंने कहा कि ‘मुझे भी लगता है कि स्वच्छता के अभियान को हमें रत्ती भर भी ओझल नहीं होने देना है।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि राष्ट्र निर्माण के लिए सबका प्रयास कैसे सबका विकास करता है इसके उदाहरण ना सिर्फ प्रेरणा देते हैं बल्कि कुछ करने के लिए एक नई ऊर्जा भर देते हैं और संकल्प में जान फूंक देते हैं। इस कड़ी में प्रधानमंत्री ने स्वच्छ भारत रैंकिंग में पहले नम्बर पर कायम मध्य प्रदेश के इंदौर, सुखेत मॉडल के जरिए गांवों में प्रदूषण कम करने के लिए बिहार के मधुबनी और ऐसा ही प्रयास करने के लिए तमिलनाडु के शिवगंगा जिले की कान्जीरंगाल पंचायत का उल्लेख किया।
प्रधानमंत्री ने कहा कि स्वच्छ भारत रैंकिंग में पहले पायदान पर बने रहने के बावजूद वहां के लोग संतोष पा करके बैठना नहीं चाहते हैं और कुछ नया करने की चाहत में उन्होंने इंदौर को वाटर प्लस सिटी बनाने की ठान ली है। ‘वाटर प्लस सिटी’ यानी ऐसा शहर जहां बिना ‘ट्रीटमेंट’ (प्रशोधन) के गंदा पानी किसी सार्वजनिक जल स्त्रोत में नहीं डाला जाता है। उन्होंने कहा कि ‘यहां के नागरिकों ने खुद आगे आकर अपनी नालियों को सीवर लाइन से जोड़ा है। स्वच्छता अभियान भी चलाया है और इस वजह से सरस्वती और कान्हा नदियों में गिरने वाला गन्दा पानी भी काफी कम हुआ है और सुधार नज़र आ रहा है।’
प्रधानमंत्री ने कहा कि आज जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है तो देश को यह याद रखना है कि स्वच्छ भारत अभियान के संकल्प को हमें कभी भी मंद नहीं पड़ने देना है। उन्होंने कहा कि देश में जितने ज्यादा शहर वाटर प्लस सिटी होंगे, उतनी ही स्वच्छता भी बढ़ेगी, नदियां भी साफ होंगी और पानी बचाने की एक मानवीय जिम्मेदारी निभाने के संस्कार भी विकसित होंगे।
मधुबनी जिले के डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद कृषि विश्वविद्यालय और वहां के स्थानीय कृषि विज्ञान केंद्र के संयुक्त प्रयासों से आरंभ किए गए सुखेत मॉडल का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि इसका लाभ किसानों को तो हो ही रहा है, इससे स्वच्छ भारत अभियान को भी नई ताकत मिल रही है। प्रधानमंत्री के मुताबिक सुखेत मॉडल का मकसद गांवों में प्रदूषण कम करना है और इसके तहत गांव के किसानों से गोबर और खेतों–घरों से निकलने वाला अन्य कचरा इकट्ठा किया जाता है और बदले में गांव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे दिए जाते हैं।
उन्होंने बताया कि जो कचरा गांव से एकत्रित होता है, उसके निपटारे के लिए वर्मी कम्पोस्ट (केंचुओं की मदद से कचरे को खाद में परिवर्तित करना) बनाने का भी काम किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सुखेत मॉडल के चार लाभ तो सीधे-सीधे नजर आते हैं। एक तो गांव को प्रदूषण से मुक्ति, दूसरा गांव को गन्दगी से मुक्ति, तीसरा गांव वालों को रसोई गैस सिलेंडर के लिए पैसे और चौथा गांव के किसानों को जैविक खाद। इस तरह के प्रयास हमारे गांवों की शक्ति कितनी ज्यादा बढ़ा सकते हैं।
प्रधानमंत्री ने इसे आत्मनिर्भरता का विषय करार दिया और देश की हर पंचायत से ऐसा कुछ करने की अपील की। तमिलनाडु के शिवगंगा जिले की कान्जीरंगाल पंचायत में कचरे से कंचन विकसित करने को लेकर चलाए जा रहे अभियान का प्रधानमंत्री ने जिक्र किया और कहा कि पूरे गांव से कचरा इकट्ठा कर उससे बिजली बनाई जाती है और बचे हुए उत्पादों को कीटनाशक के रूप में बेच भी दिया जाता है। उन्होंने कहा कि गांव में इसके लिए एक संयंत्र भी स्थापित किया गया है और इसकी क्षमता प्रतिदिन दो टन कचरे के निस्तारण की है।
उन्होंने कहा कि इससे बनने वाली बिजली का गांव के बिजली के खंभों के साथ दूसरी जरूरतों में उपयोग हो रहा है। इससे पंचायत का पैसा तो बच ही रहा है, वह पैसा विकास के दूसरे कामों में इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि ‘अब मुझे बताइये कि तमिलनाडु के शिवगंगा जिले की एक छोटी सी पंचायत हम सभी देशवासियों को कुछ करने की प्रेरणा देती है कि नहीं देती है। कमाल ही किया है न इन्होंने।’
उल्लेखनीय है कि सार्वभौमिक स्वच्छता प्राप्त करने के लिए किए जा रहे प्रयासों में तेजी लाने और स्वच्छता पर ध्यान केंद्रित करने के लिए प्रधानमंत्री ने दो अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान आरंभ किया था।
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