सरहद न होती तो हर शाम तूं मेरे यहां होती
मैं भारतीय गधा और तूं पाकिस्तान गधी साथ-साथ चरते
न मैं भारत से डरता न तूं पाकिस्तान से डरती
जब भी मिलते हरी घास की चादर पर तो प्यार भरी बातें होती
होता वो सबकुछ जो दो प्रेमी हैं करते, न मैं सरहद के बंधन में होता
न तू पाकिस्तान की सरहद के उस पार होती
अगर ये सरहद न होती तो शायद आज हमारी बगिया में
दो फूल भी खिल गए होते
मगर सरहद ने सबकुछ बांटकर रख दिया,
गधे होकर भी हमें इंसानों ने भारत और पाकिस्तान में बांध दिया
अब कैसे परवान चढ़ेगा एक गधे और गधी का प्यार
तूं सरहद के है उस पार, मैं हूं सरहद के इस पार
चल रही गोलियां के बीच न मेरा मालिक मुझे खुला छोड़ रहा
न ही तेरा मालिक लेना चाहता है कोई रिस्क मोल
सरहदों के बीच में कैसे पहुंचाउं तेरे पास दो मीठे बोल
अब तो सपने में ही तुझे निहार पाता हूं,
तेरे गधीपन को याद कर-करके थोड़ा बहुत अकेले चर पाता हूं
तेरे बिना तो हरी घास भी कड़वी लगती है
याद आती है उन दिनों की जब हम ढेंचू-ढेंचू करके
दोनों यहां से वहां तक आजाद परवानों की तरह घूमा करते थे
न मैं न ही तू फौजियों से डरा करती थी
कितने अ'छे थे वो दिन जब सरहद नहीं हुआ करती थी
क्या खाक पाया इंसानों ने इस सरहद को खींच कर
गधों को भी बांट दिया इस लकीर पर
ये सरहद न होती तो पाकिस्तानी गधी आज मेरे साथ होती
वो होती तो वैसा होता, वो होती तो ऐसा होता
प्रस्तुति: मंडयाली ठाकुर
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