जिस तरह से प्यार और जंग में सबकुछ जायज होता है, उसी तरह राजनीति में भी सबकुछ जायज कर दिया गया है। यहां बात कोविड-19 प्रोटोकॉल के मामले में आम जनता और राजनीतिक दलों में हो रहे भेदभाव को लेकर है। हमारा देश कारोना की विभिषिका की दो लहरों में से गुजर चुका है और लाखों लोगों की जान गवां चुका है। देश का कोई भी राज्य ऐसा नहीं है, जहां कोरोना ने व्यवस्था को चुनौती ना दी हो, मगर हमारे राजनीतिक दल ऐसे हालात में भी राजनीति फायदे के लिए रैलियां, जनसभाएं और रोड शो करने से बाज नहीं आ रहे। जनता की दुकानें और कारोबार भले ही बंद करवाए गए हों, मगर इनकी राजनीतिक दुकानदारी बेरोकटोक चलती रही है।
देश की राजनीति की हालत यहां की चुनाव व्यवस्था में खामी(एक साथ चुनाव ना होना) के चलते इतनी बिगड़ चुकी है कि राजनीतिक दल चाहें भी तो भी वो कोविड माहामारी के इस दौर में कार्यकर्ताओं या कहें वोटरों से दो गज दूर बना कर नहीं रह सकते। कोरोना के इस दौर में देश में जहां लोग आक्सीजन के लिए तड़प-तड़प कर जिंदगियां खो रहे थे, तो दूसरी ओर देश में चुनावों का दौर राजनीति को ऑक्सीजन दे रहा था। हालांकि हमारे संविधान के मुताबिक जिन-जिन प्रदेशों में सरकारों का कार्यकाल समाप्त हो गया है, वहां चुनाव करवाना चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व है, मगर जब वैश्विक महामारी के चलते देश में लाखों लाशें बिछी हों, शहरों के शहर और देशों के देश थम गए हों, तो ऐसे में क्या संविधान में संशोधन नहीं हो सकता या कहें ऐसा कोविड प्रोटोकॉल नहीं बनाया जा सकता, जो कोरोनो को फैलने से रोकने के लिए राजनीतिक रैलियों, जनसभाओं और रोड शो को पूरी तरह प्रतिबंधित करके सुरक्षित चुनाव करवाए या चुनावों को कुछ समय के लिए टाला जाए।
फिलहाल ऐसा अब तक तो होता नहीं दिख रहा, देश ने कोरोना का दूसरा दौर पीछे छोड़ दिया है, अब तीसरी लहर को लेकर तैयारी चल रही है। ऐसे में कुछ प्रदेशों में चुनाव और उपचुनाव की तैयारियों ने भी जोर पकड़ लिया है। राज्य सरकारें आम जनता पर तो कोविड-19 प्रोटोकॉल को लागू करने के लिए कड़े दिशानिर्देश तो थोप रही हैं, मगर खुद पर और अपने राजनीतिक दलों की भीड़ एकत्रित करने वाली गतिविधियों को कोरोना मुक्त मानती हैं। उत्तराखंड, पंजाब, उत्तर प्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, गोवा, मणिपुर में अलगे साल आने वाले विधानसभा चुनावों को लेकर राजनीति उफान में है और कोरोना फैलने की ताक में। तो वहीं हिमाचल सहित कुछ राज्यों में इसी साल में संभावित उपचुनावों को लेकर भी राजनीति हलचल जोरों पर है। जनसभाओं, रैलियों, रोड शो में सैकड़ों या कहें हजारों लोगों की भीड़ जुटाई जा रही है। कुछ नेता भी बेशर्मी से यह कहते नहीं थक रहे कि उनकी जनसभाओं, रैलियों, रोड शो से कोरोना नहीं फैल रहा, यह तो आम जनता शादियों, पार्टियों, बाजारों, समारोहों इत्यादि में कोरोना नियमों का पालन ना करके फैला रही है। यह दावा वैसा ही है जैसा दावा ऑक्सीजन की कमी से कोई मौत ना होने को लेकर किया जा रहा था। कुल मिलाकर यही कहा जा सकता है कि कानून बनाने वालों से कानून के पालन की उम्मीद कम ही है, लिहाजा जनता अपनी जान की सुरक्षा की जिम्मेवार खुद है। मास्क पहनें, दो गज की दूरी का पालन करें, वैक्सीन लगवाएं, भीड़भाड़ में जाने से बचें और स्वस्थ व सुरक्षित रहें। इन्हीं पंक्तियों में ही कोरोनाकाल में बचे रहने का जीवन तत्व मौजूद है।