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स्वास्‍थ्‍य सेवाओं को सुदृढ़ करती “AYUSH” चिकित्सा प्रणालियां

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Tuesday, September 29, 2020 18:30 PM IST
स्वास्‍थ्‍य सेवाओं को सुदृढ़ करती “AYUSH” चिकित्सा प्रणालियां

विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार 80 के दशक में अधिकतर, विशेष तौर पर विकासशील देशों के लोगों को आधुनिक चिकित्सा सेवा या चिकित्सक उपल्बध नहीं थे। उन्हें इन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पारंपरिक तथा पुरानी पद्धत्ति से इलाज करने वालों पर निर्भर रहना पड़ता था। इसके पश्चात आधुनिक चिकित्सा प्रणाली यानि एलोपैथी का तेजी से विकास हुआ। इस कारण से पारंपरिक एवं वैकल्पिक प्रणालियों से इलाज करवाने या करने वाले रोगियों की संख्या में निरंतर कमी होनी शुरू हो गई थी। परन्तु अच्छी बात यह रही कि भारत में ऐसा नहीं हुआ और एलोपैथी अपने पैर पूरी तरह नहीं पसार पाई। इसका मुख्य कारण भारत में वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए "आयुष" नामक एक अलग व्यवस्था का होना है और इसका अपना मंत्रालय भी है। आयुष मंत्रालय की स्थापना 9 नवंबर, 2014 में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की तर्ज़ पर की गई। आयुष मंत्रालय वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों के विकास और प्रसार के लिए नीति बनाता है तथा उसके अनुसार कार्य करता है।

बदलते परिवेश में बदल रहीं स्वास्थ्य प्राथमिकताओं, कुछ संक्रामक तथा गैर-संक्रामक रोगों और आर्थिक विकास को देखते हुए "राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति -2017" की नींव रखी गई थी। इसका मुख्य उद्देश्य स्वास्थ्य प्रणाली के सभी क्षेत्रों, जैसे कि मानव संसाधन विकास, प्रौद्योगिकी तक पहुँच, स्वास्थ्य हेतु ज्ञान आधार तैयार करना तथा विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों को प्रोत्साहन देना इत्यादि के बारे में सरकार की भूमिका और प्राथमिकता को स्पष्ट करना है। जो लोग आयुष प्रणालियों के माध्यम से अपना उपचार करवाना चाहते हैं तो यह नीति सुनिश्चित करती है कि उन्हें यह सुविधा जन-स्वास्थ्य केंद्रों पर ही मिले। अधिकतर लोग आयुष को सिर्फ़ आयुर्वेद ही समझते हैं, परंतु सच्चाई इसके विपरीत है, आयुष (AYUSH) के अंतर्गत A-आयुर्वेद, Y-योग, U-यूनानी, S-सिद्धा तथा H- होम्योपैथी पांच चिकित्सा प्रणालियाँ आती हैं। 1983 में भारत की पहली स्वास्थ्य नीति तैयार की गई। इसके अंतर्गत विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों को एक साथ जोड़ने की आवश्यकता पर बल दिया गया है।

WHO द्वारा तय मानकों के अनुसार एक हजार लोगों पर एक चिकित्सक जरूर होना चाहिए। स्वास्थ्य मंत्रालय द्वारा संसद में प्रस्तुत किए गए आंकड़ों के अनुसार 31 मार्च, 2019 तक देश में 1445 लोगों पर एक चिकित्सक था। यदि राज्यों पर नजर डालें तो उत्तराखंड में 1631, पंजाब में 778, हरियाणा में 6287, हिमाचल में 3015, जम्मू कश्मीर में 1143, एनसीआर में 1252 लोगों पर महज एक चिकित्सक उपलब्ध है। जबकि आयुष (आयुर्वेद, योग, यूनानी, सिद्धा और होम्योपैथी) चिकित्सा प्रणालियों के चिकित्सकों को इसमें जोड़ दिया जाए, तो आंकड़ों की स्थिति और बेहतर हो जाती है। इन आंकड़ों में एलोपैथी और आयुष दोनों ही तरह के चिकित्सकों को अलग-अलग दर्शाया गया है। अगर दोनों प्रणालियों के चिकित्सकों को मिला दिया जाए, तो संख्या पर्याप्त है। मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार देश में 11.59 लाख एलोपैथिक चिकित्सक पंजीकृत हैं, लेकिन इनमें से केवल 9.27 लाख चिकित्सक ही अस्पतालों या निजी क्लिनिकों में मरीजों का इलाज कर रहे हैं। वहीं देश में 6.30 लाख आयुष चिकित्सक हैं, जो चिकित्सकों की कमी से जूझते राज्यों की स्वास्थ्य सेवाओं की जरूरतों को पूरा करने में अपना योगदान दे रहे हैं। भारत में कई जगह सरकारी अस्पतालों में आधुनिक दवाओं के साथ ही वैकल्पिक चिकित्सा सुविधाएं भी उपलब्ध हैं। 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (NRHM) के अंतर्गत एलोपैथी के साथ ही भारत की आयुष प्रणालियों को भी मुख्य धारा से जोड़ने के बाद इन प्रणालियों में फिर से जान डाली गई है। चूंकि स्वास्थ्य राज्य का विषय है, इसलिए केंद्रीय स्तर पर की जाने वाली किसी भी पहल में समस्याएं आती हैं और इससे स्वास्थ्य सेवाएं आम लोगों तक ढंग से नहीं पहुंच पातीं। नेशनल मेडिकल कमीशन बिल में प्रस्तावित ब्रिज कोर्स का विरोध भी किसी से छिपा नहीं है। इस ब्रिज कोर्स में आयुष चिकित्सकों को भी आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का एक वर्ष का कोर्स करने की अनुमति दी गई थी, परन्तु इसकी विरोधता का देखते हुए, इसे लागू नहीं किया जा सका। ऐसी समस्यायों से बचने के लिए सभी चिकित्सा प्रणालियों का आपस में ही समन्वय बनाकर अपनी ही चिकित्सा प्रणाली में प्रेक्टिस करने पर बल दिया जाना चाहिए। इससे प्रत्येक चिकित्सा प्रणाली के प्रसार में सहायता मिलेगी, प्रत्येक चिकित्सा प्रणाली की अपनी अलग पहचान बनेगी और किसी अन्य चिकित्सा प्रणाली के अस्तित्व पर भी कोई खतरा नहीं आएगा।

राष्ट्रीय हैल्थ मिशन का हिस्सा होने के बावजूद आधुनिक एवं वैकल्पिक चिकित्सा प्रणालियों का समायोजन ठीक ढंग से नहीं हो पाया। अक्सर निर्णय मरीज पर छोड़ दिया जाता है कि उसे कौन सा इलाज़ पसंद है। इसका कारण अधिकतर लोगों में अभी भी विभिन्न चिकित्सा प्रणालियों के बारे में जागरूकता की कमी है। प्रत्येक चिकित्सा प्रणाली अपने आप में एक सम्पूर्ण विज्ञान है, जिसमें प्रत्येक बीमारी का इलाज करने की क्षमता है। कुछ एक बीमारियों का किसी एक चिकित्सा प्रणाली में तो कुछ एक का किसी अन्य चिकित्सा प्रणाली में बेहतरीन तथा पूर्ण इलाज संभव है। इसीलिए सभी चिकित्सा प्रणालियों का समान रूप से प्रचार एवं प्रसार करने की जरूरत है। इसके अलावा, इन सभी को आपस में एकीकृत करके, इनके आपसी समन्वय को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। सरकारों को चाहिए कि एक ऐसी व्यवस्था तैयार की जाए, जिसमें सभी प्रणालियों को समान अधिकार दिए जाएं और एक ही छत के नीचे सभी को एक साथ बिठाने का प्रबंध किया जाए, जिससे मरीजों को एक ही स्थान पर उनकी बीमारियों का कारगर इलाज मिल सके। सभी चिकित्सा प्रणालियों के चिकित्सकों को अपनी एवं दूसरी प्रणाली के सामर्थ्य का पूर्ण सम्मान करना चाहिए और उसी के अनुसार मरीज का भी मार्गदर्शन करना चाहिए।

हिमाचल प्रदेश में भी आयुष चिकित्सक राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं में अपनी अहम भूमिका निभा रहे हैं। इस समय हिमाचल में आयुर्वेद के लगभग 1500 केंद्र हैं, जबकि होम्योपैथी के मात्र 14 केंद्र हैं। आयुष की इन दो मुख्य चिकित्सा प्रणालियों के प्रचार प्रसार में जमीन आसमान का अंतर है। वहीं पर अगर आयुष चिकित्सा शिक्षा की बात कि जाए तो हिमाचल में आयुर्वेद का एक कॉलेज सरकारी क्षेत्र में और दो कॉलेज निजी क्षेत्र में हैं। जबकि प्रदेश में होम्योपैथी का केवल एक ही कॉलेज है, वह भी निजी क्षेत्र में। लेकिन बात निजी और सरकारी क्षेत्र की नहीं है। निजी कॉलेज को भी मान्यता सरकार ही देती है, परन्तु वहां से शिक्षित चिकित्सक, सरकारी क्षेत्र में सेवा का कोई प्रावधान न होने की वजह से या तो अन्य राज्यों की ओर चल जाते हैं या अपनी सेवाएं निजी क्षेत्र में देते हैं। मौजूदा सरकार द्वारा वर्ष 2019 में इन्वैस्टर्स मीट के समय "स्टेट आयुष पॉलिसी" बनाई गई। इसमें कहा गया था कि प्रदेश सरकार आयुष की सभी पांच चिकित्सा प्रणालियों के वर्तमान स्थापित केंद्रों को अपग्रेड करने के साथ ही नए केंद्र खोलने के प्रयास भी करेगी। ऐसे में हिमाचल में होम्योपैथी एवं होम्योपैथिक चिकित्सकों को उम्मीद की किरण नजर आ रही है। परंतु यह प्रयास ख़रगोश की गति से किया जाना चाहिए, ना कि कछुए की चाल से।

डॉ. अवनीश कुमार
सहायक प्रोफ्रेसर,
सोलन होम्योपैथिक मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल,
कुमारहट्टी, जिला सोलन
(हि.प्र.) 173229.
मोबाइल: 9817095563, 7018169633
[डॉ. अवनीश कुमार की फेसबुक वॉल से साभार]

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