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गवेधुक की रोटी से कम होगा मोटापा

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Thursday, October 15, 2020 23:05 PM IST
गवेधुक की रोटी से कम होगा मोटापा

जोगिंद्रनगर। अब मोटापा कम करने के लिए महंगी दवाओं के साथ-साथ जटिल चिकित्सीय उपचार से जल्द छुटकारा मिल जाएगा। भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान जोगिंद्रनगर के द्रव्य गुण एवं औषधीय पौध उत्कृष्टता केंद्र ने एक ऐसे पौधे पर पिछले तीन साल में गुपचुप सफलतापूर्वक शोध किया है, जिसके आटे की रोटी खाकर न केवल मोटापे की समस्या से निजात पाई जा सकती है, बल्कि शरीर में वसा की मात्रा को भी कम किया जा सकेगा। संस्थान के अन्वेषकों ने प्राचीन औषधीय पौधे गवेधुक पर शोध करने में यह बड़ी कामयाबी हासिल की है। निश्चित तौर पर भविष्य में इसके नतीजे मोटापे की समस्या से परेशान लोगों को बड़ी राहत प्रदान करने वाले साबित होंगे।

गवेधुक पौधे से चावल के आकार का दाना प्राप्त होता है, जिसके आटे से रोटी बनाकर खाने से मोटापे से छुटकारा पाया जा सकता है। संस्थान ने गवेधुक से बनने वाली रोटी के लिए विशेष विधि भी तैयार की हैं, जिसको अपनाकर न केवल मोटापे से मुक्ति मिलेगी, बल्कि भूख भी कम होगी। गवेधुक की खेती 1500 मीटर की ऊंचाई पर मध्य हिमालयी क्षेत्र में आसानी से की जा सकती है। गवेधुक मक्की की तरह एक वार्षिक फसल है, जो छह महीने में पककर तैयार हो जाती है।

राष्ट्रीय औषध पादप बोर्ड, आयुष मंत्रालय भारत सरकार के क्षेत्रीय निदेशक उत्तर भारत स्थित जोगिंद्रनगर डा. अरुण चंदन ने बताया कि औषधीय पौधे गवेधुक की कृषिकरण तकनीक विकसित करने में संस्थान ने कामयाबी हासिल कर ली है। आयुर्वेदाचार्य डा. अनिरुद्ध शर्मा ने कहा कि औषधीय पौधे गवेधुक की खेती से जुड़ने एवं अन्य तकनीकी जानकारी हासिल करने के लिए किसान नेशनल मेडिसिनल प्लांट्स बोर्ड के क्षेत्रीय निदेशक, क्षेत्रीय एवं सुगमता केंद्र उत्तर भारत स्थित जोगिंद्रनगर के कार्यालय से संपर्क स्थापित कर सकते हैं।

भारतीय चिकित्सा पद्धति अनुसंधान संस्थान के द्रव्य गुण एवं औषधीय पौध उत्कृष्टता केंद्र के प्रधान अन्वेषक डा. पंकज पालसरा की अगुवाई में पिछले तीन साल से प्राचीन औषधीय पौधे गवेधुक पर जोगिंद्रनगर में शोध कार्य किया गया है। पांच हजार वर्ष पुराने आयुर्वेद की चरक संहिता में इस पौधे का उल्लेख किया गया है। संस्थान में इस पौधे पर पिछले तीन साल से लगातार कार्य करते हुए संस्थान के अन्वेषकों ने प्राकृतिक तौर पर इसकी फसल तैयार कर बड़ी कामयाबी हासिल की है। इस शोध के कारण अब न केवल गवेधुक की खेती को किसान बड़े स्तर पर कर सकेगा, बल्कि किसानों के लिए आय का एक अतिरिक्त साधन भी साबित हो सकता है।

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