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हिमाचल से भी है प्राचीन सर्जरी का नाता

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Friday, December 11, 2020 11:49 AM IST
हिमाचल से भी है प्राचीन सर्जरी का नाता

सोलन, 11 नवंबर। हिमाचल प्रदेश से प्राचीन भारतीय सर्जरी का नाता रहा है। वैसे तो आयुर्वेद का उद्गम स्थल भी हिमालयी प्रदेशों हिमाचल-उत्तरांचल माना गया है। वेदों में वर्णित है कि प्राचीन काल में आरोग्य को लेकर प्रथम संगोष्ठी हिमालयी प्रदेशों हिमाचल उत्तरांचल की तराई में आयोजित की गई थी। पहले समय में कई अपराध करने के दंड स्वरूप कान, नाक, हाथ, पैर आदि काटने की सजा सुनाई जाती थी। हिमाचल का त्रिगर्त क्षेत्र (वर्तमान कांगड़ा जिला) शल्य चिकित्सा विशेषकर प्लास्टिक सर्जरी का विख्यात केंद्र हुआ करता था। यहां पर कटे हुए कान, नाक आदि को गढ़ने का काम आयुर्वेद शल्य चिकित्सा तज्ञ ‘‘कनेहड़े- कनेड़े’ किया करते थे। कालांतर में कान नाक गढ़ने तथा कनेड़ों के कारण ही त्रिगर्त का नाम ‘कांगड़ा’ पड़ गया। अभी भी उन कनेड़ों के वंशज कांगड़ा क्षेत्र में ढूंढ़े जा सकते हैं।

विश्व के सबसे प्राचीन माने गए ग्रंथ, ‘वेदों’ में से लिया गया आयुर्वेद का ज्ञान हजारों हजार वर्ष पहले लिखा गया है। हमारे ऋषि-मुनियों तथा प्राचीन शोधकर्ताओं ने अनेकों वर्ष के अध्ययन तथा अनुसंधान के बाद आयुर्वेद विज्ञान के आरोग्य एवं चिकित्सा के सिद्धांतों, भिन्न-भिन्न बीमारियों तथा उनके कारण, उपचार आदि के बारे में सुव्यवस्थित जानकारी वर्णित की है। अष्टांग आयुर्वेद के अंतर्गत आयुर्वेद की आठ विशिष्टताओं (स्पैशिऐलिटी) जैसे काय-चिकित्सा (जनरल मैडिसन), द्रव्यगुण (फार्माकोलाॅजी), रस शास्त्र एवं भैषज्य कल्पना (फार्मास्युटिकल), प्रसूति एवं स्त्री रोग (आबॅस्टैट्रिक्स एवं गायनाकाॅलोजी), शल्य चिकित्सा (सर्जरी), शालाक्य एवं नेत्ररोग (ईएनटी एवं आई डिसीज), कौमारभृत्य बालरोग (पीडिऐट्रिक्स), अगदतंत्र (ज्यूरिंसप्रूडैंस एण्ड टाक्सीकाॅलाजी), भूतविद्या (सायक्यैट्री), रसायन एवं बाजीकरण (लौंजीविटी एंड ऐफ्रोडिएऐसिक्स) आदि।

शल्य चिकित्सा सर्जरी के पितामह के रूप में विश्व विख्यात आयुर्वेद मनिषी सुश्रुत ने अपने ग्रंथ ‘सुश्रुत संहिता’ में शल्य चिकित्सा-सर्जरी के आधारभूत सिंद्धांतों के साथ-साथ भिन्न-भिन्न प्रकार तथा रोगों की शल्य क्रिया का व्यवस्थित वर्णन किया है। इसमें पूर्व कर्म (प्रिआओपरेटिव), प्रधान कर्म (औपरेटिव) एवं पाश्चात कर्म (पोस्ट औपरेटिव) प्रक्रियाओं का स्टैप बाय स्टैप वर्णानात्मक उल्लेख किया है। आघात -जख्म-व्रण के प्रकार, सूई के प्रकार (सूचरिंग नीडल), (सूचरिंग थ्रैड), सीवन (सूचरिंग) के प्रकार, पट्टी (बैंडेज) के प्रकार, अलग-अलग अंगों के लिए अलग-अलग बैंडेज, बूंड हीलिंग, ज़ख्म हीलिंग में काॅस्मैटिक पहलू पर बल आदि विषयों पर विस्तृत जानकारी प्रदान की गई है। सुश्रुत संहिता में आचार्य सुश्रुत ने 101 सर्जीकल यन्त्रों, 20 सर्जीकल शस्त्रों 25 सर्जीकल उपयन्त्रों, 12 प्रकार के फ्रैक्चर, 6 प्रकार के डिस्लोकेशन, बोन संधान या ग्राफटिंग का वर्णन किया है। भिन्न-भिन्न रोगों के लिए अलग-अलग सर्जीकल प्रोसीजर की व्याख्यात्मक वर्णन, हड्डी फ्रैक्चर के प्रकार, व्रणबंधन जैविक प्लास्टर, जलने से हुए घाव के प्रकार, चिकित्सा, प्लास्टिक सर्जरी, पत्थरी की सर्जरी, गुदरोगों (ऐनोरैक्टल डिसीज), प्रसव डिलीवरी (सीजेरियन डिलिवरी), अर्बुद (ट्यूमर) इत्यादि की शल्य क्रिया का विस्तृत विवरण सुश्रुत संहिता में बताया गया है।

सर्जरी को लेकर आम धारणा यही है कि यह एलोपैथी विधा है, जबकि शल्य चिकित्सा या सर्जरी की शुरुआत हमारे देश में ही लगभग 5000 साल पहले आयुर्वेद के महर्षि सुश्रुत ने की थी। जिन्हें ’फादर आॅफ सर्जरी’ यानि की विश्व में शल्य चिकित्सा के पितामाह या जनक के रूप में जाना जाता है। आज भी एलोपैथी शल्य चिकित्सक सर्जरी के लिए आयुर्वेद में वर्णित पद्धति की मदद लेते है। दुनियाभर में आज भी सुश्रुत की विकसित तकनीक व औजार से सर्जरी की जाती है। उसी तरह से चीरे और टांके लगाए जाते हैं। ‘सुश्रुत संहिता’ में 125 प्रकार के सर्जरी के औजार, सूचीवेध (इंजेक्शन) और 300 से अधिक प्रकार की सर्जरी के बारे में लिखा गया है। आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, कोलम्बिया आदि देशों की मैडीकल यूनिवर्सिटी में आचार्य सुश्रुत को फादर आफ सर्जरी का सम्मान देते हुए उनकी प्रतिमा स्थापित की गई है। शल्यक्रिया भारत की बौद्धिक संपदा है। संज्ञाहरण के लिय सम्मोहन, बंधन, योगिक बंध, मादक औषधीयौं भांग, अहिफेन, मृत संजीवनी सुरा आदि जो शास्त्रोक्त योग आदि का प्रयोग किया जाता था।

विश्व के अधिकतम आबादी वाले देशों में शामिल भारत में 60 प्रतिशत से अधिक लोगों को सर्जीकल सुविधाएं उपलब्ध नहीं है। भारत सरकार द्वारा आयुर्वेद शल्य,शालाक्य, नेत्र एवं दंत रोग चिकित्सा में एम.एस. शल्य चिकित्सकों को और विभिन्न प्रकार की सर्जरी करने को अधिकृत करने को जनहित में लिया समसामयिक एवं सराहनीय कदम है। इस कदम से यहां एक ओर क्वालीफाईड तथा ट्रेंड सर्जनों की संख्या बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर और अधिक जनता को शल्य चिकित्सा से ठीक होने वाले रोगों का उपचार उपलब्ध हो सकेगा।

भारतवर्ष में पिछले 40-50 वर्ष से शल्य शाला तथा प्रसूति तंत्र एवं स्त्री रोग में एमएस आयुर्वेद की स्नातकोत्तर डिग्री प्रतिवर्ष लगभग 200-200 चिकित्सकों के हिसाब से प्रदान की जा रही है। कुल मिलाकर देखा जाए तो सारे देश में 5000 से अधिक आयुर्वेद शल्य चिकित्सक कार्य कर रहे हैं। बड़े आयुर्वेद अस्पतालों में सब प्रकार की शल्य चिकित्सा की जाती है तथा स्पेशलिटी क्लिनिक्स में गुद रोगों (एनो रेक्टल) की चिकित्सा आयुर्वेद से लेकर शल्य कर्म क्षार सूत्र विधि द्वारा सफलतापूर्वक की जा रही है।

देश के प्राइवेट नर्सिंग होम्स या हाॅस्पिटल में आयुर्वेद के डाॅक्टर सफलतापूर्वक आॅपरेशन थिएटर, कैजुअल्टी, आईसीयू एवं अन्य विभागों में कार्य करते हुए देखे जा सकते हैं। आधुनिक सर्जरी के सिद्धांतों एवं प्रक्रियाओं को मूल आयुर्वेद शल्य शास्त्रों में देखा जा सकता है जिनकी व्याख्या आधुनिक विज्ञान, तकनीकी, कम्प्यूटर तथा डिजिटल टैक्नालोजी से भली-भांति की जा रही है। 6 प्रकार के घाव, 14 प्रकार की पट्टियां (बैंडेज), 15 प्रकार के कान की सर्जरी की तकनीक, टांका लगाने की विधि, टांका लगाने की सूइयां, टांका लगाने का धागा या डोरी के भिन्न-भिन्न प्रकार उच्च कोटि की शल्य चिकित्सा या सर्जरी में महारत को प्रमाणित करने के लिए काफी हैं।

सरकार द्वारा भारतीय चिकित्सा केंद्रीय परिषद (आईएमसीसी) एक्ट 1970 (48) तथा आयुर्वेद स्नातकोत्तर एजूकेशन रैगुलेशन 2016 संशोधित 2020 के अंतर्गत स्पष्ट रूप से उल्लेख किया है कि शल्य चिकित्सा (सर्जरी), शालाक्य (आंख, नाक, कान, गला के रोगों) को प्रैक्टिकली ऐसी ट्रेनिंग प्रदान की जाएगी जिससे वह चिकित्सक पोस्ट ग्रैजुएशन के उपरांत स्वतंत्र रूप से सभी प्रकार के शल्य प्रक्रिया करने में सक्षम हों।
डाॅ. राकेश पंडित
एम.एस. शल्य
बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय वाराणसी,
मैंबर, बोर्ड आफ गवर्नर्स सीसीआईएम, भारत सरकार
941800770
ईमेल- rkdrpandit@gmail.com

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