-सीएए और एनआरसी का किया घोर विरोध
-त्रिवेंद्र सरकार को बताया मोदी सरकार का नकलची बंदर
पौड़ी गढ़वाल। लैंसीडाउन स्थित कालों के डांडा में सोमवार सुबह प्रदेश भर के बंदरों और गुलदारों ने एनआरसी और सीएए के खिलाफ प्रदर्शन किया। प्रदर्शनकारी बंदरों और गुलदारों ने मोदी व त्रिवेंद्र रावत के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाए। बंदरों और गुलदारों ने इस एक्ट को प्रकृति और संविधान के खिलाफ बताया।
प्रदर्शनकारियों ने मांग की कि सीएए और एनआसी को उत्तराखंड में लागू न किया जाए। बंदरों के सरदार हरसु ने कहा है कि यह अधिनियम प्रकृति के खिलाफ है। कोई कहीं भी रह या बस सकता है। उनका तर्क है कि बंदर नकलची हैं तो त्रिवेंद्र सरकार भी तो मोदी सरकार की नकल करती है। ऐसे में त्रिवेंद्र सरकार भी हमारी श्रेणी में है। कम से कम त्रिवेंद्र सरकार और बंदर भाई-भाई होने के नाते यह एक्ट तो लागू नहीं करें।
प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए कालू गुलदार ने कहा कि यह अन्याय है। हम पहाड़ों में चीन, नेपाल, भूटान से देश और प्रदेश की रक्षा कर रहे हैं। पहाड़ों में अब आदमी तो हैं नहीं। जो हैं वो डरपोक हैं। ऐसे में हम ही पहाड़ों का भाग्य है। यदि एनआरसी और सीएए लागू हुआ तो भला पहाड़ों में रहेगा कौन? गौरतलब है
कि कालों का डांडा में कड़ाके की ठंड के बीच यह प्रदर्शन हुआ। प्रदर्शन में सभी नौ पर्वतीय जिलों के बंदरों और गुलदारों ने प्रतिभाग किया। ताजी बर्फबारी के बावजूद बड़ी संख्या में बंदर और गुलदार यहां जुटे।
बंदरों के सरदार हरसु के अनुसार पहाड़ भर में उनकी संख्या तीन लाख से अधिक है, इसके अलावा उनकी बातचीत जंगली सूअरों से भी चल रही है। इनकी संख्या भी पहाड़ में 50 हजार से अधिक है। ऐसे में साढ़े तीन लाख से भी अधिक बंदर, जंगली सूअर और गुलदार इस एक्ट का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि हरकू दा बंदरों पर जुल्म ढा रहे हैं। बंदरबाड़ा बनाना चाहते हैं और उनका बंधीकरण कर रहे हैं। यह भीं प्रकृति के नियमों के खिलाफ है। उन्होंने इसे अन्याय करार दिया। कहा कि जब त्रिवेंद्र और हरकू दा पहाड़ छोड़ गए तो कोई तो उनकी जगह लेगा। हमने ली तो क्या गुनाह किया?
बंदर सरदार हरसु ने चेतावनी दी है कि यदि एनआरसी राज्य में लागू की तो वो देहरादून में अपनी धमक दिखाएंगे। कालू गुलदार ने भी इस पर सहमति जताई है। इस सूत्रों ने खबर दी कि जंगली सुअरों की रानी चुन्नी ताई ने बंदरों और गुलदारों को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। इस तिकाने समझौते से त्रिवेंद्र सरकार के लिए नया खतरा पैदा हो गया है। बंदरों का तर्क है कि त्रिवेंद्र सरकार को अपने पूर्वज जो कि बंदर ही थे को ध्यान में रखते हुए एनआरसी और सीएए लागू नहीं करना चाहिए।
आपकी जानकारी के लिए बता दिया जाएं तो यहां अधिकांश गुलदार, जंगली सूअर और बंदर बंग्लादेश, नेपाल और चीन सीमा से घुसपैठ कर आए हैं। इसके अलावा दिल्ली, बिजनौर, रामपुर, और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से भी बंदरों को यहां छोड़ा गया है। ताजा हालत यह है कि बिना जंगली सूअर, बंदरों और गुलदारों के आतंक के बिना पहाड़ की कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
[वरिष्ठ पत्रकार गुणानंद जखमोला की फेसबुक वॉल से साभार]
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