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नशा मुक्‍ति केंद्रों की दयनीय हालत पर हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, दो माह में मांगा जवाब

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Wednesday, September 15, 2021 20:24 PM IST
नशा मुक्‍ति केंद्रों की दयनीय हालत पर हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान, दो माह में मांगा जवाब

शिमला,15 सितंबर। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में नशा मुक्‍ति एवं एकीकृत पुनर्वास केंद्रों की दयनीय स्थिति पर संज्ञान लेते हुए प्रदेश के सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को नोटिस जारी कर दो सप्ताह में जवाब तलब किया है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने यह आदेश अंग्रेजी दैनिक में प्रकाशित एक समाचार को जनहित याचिका के रूप में लेते हुए जारी किया है। न्‍यूज रिपोर्ट के अनुसार हिमाचल को नशा मुक्त राज्य बनाने के राज्य सरकार के दावों के बावजूद नशा मुक्ति केंद्र की स्थिति कुछ और ही कहानी बयां करती है। जबकि कुल्लू, धर्मशाला, चंबा, मंडी, सिरमौर, बिलासपुर और सोलन में स्थापित केंद्र पहले अनुदान प्राप्त होने के बावजूद अभी तक चालू नहीं हुए हैं।

 

वर्ष 2019 में शिमला में शुरू किया गया 15 बेड केंद्र बंद होने का सामना कर रहा है क्योंकि इस केंद्र ने पिछले दो वर्षों के दौरान केंद्र सरकार से अनुदान प्राप्त नहीं किया। यह केंद्र नए मरीजों को जोड़ने की स्थिति में नहीं है और इसमें केवल तीन की ही ऑक्यूपेंसी है। एक साल से वेतन नहीं मिलने के कारण कर्मचारियों को छुट्टी पर जाना पड़ा है। किराए के भवन में स्थित होने के कारण केंद्र किराया, बिजली, पानी, टेलीफोन और इंटरनेट शुल्क का भुगतान करने में असमर्थ है, और इसके अलावा, कैदियों को दवा और भोजन उपलब्ध कराना मुश्किल हो गया है। ओपीडी और आईपीडी की सुविधा भी बंद कर दी गई है।

 

रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि केंद्र ने उच्च अधिकारियों के साथ अपनी चिंताओं को साझा किया है लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। आगे बताया गया कि मादक पदार्थों की लत के मामले बढ़ रहे हैं और 1 जनवरी 2020 से 30 अप्रैल 2021 तक कुल 2,126 मामले दर्ज किए गए हैं। रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में शिमला, कुल्लू, ऊना और हमीरपुर में 60 बिस्तरों की कुल क्षमता के साथ चार कार्यात्मक आईआरसीए हैं। अन्य तीन पूरी क्षमता से चल रहे हैं लेकिन इन्हें भी वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ रहा है।

 

इन सभी तथ्‍यों के मद्देनजर उच्च न्यायालय ने अतिरिक्त मुख्य सचिव (सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता) एवं निदेशक, सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता को इस संबंध में नोटिस जारी करते हुए दो सप्ताह के भीतर जवाब देने का निर्देश दिया है।

 

 

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