Monday, October 02, 2023
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मधुदीप की लधुकथाः लौटा हुआ अतीत

एफ.आई.आर. लाइव डेस्क Updated on Monday, July 19, 2021 23:26 PM IST
मधुदीप की लधुकथाः लौटा हुआ अतीत

हाँ अनवर! मैं इस धार्मिक किताब पर हाथ रखकर पूरे होशो हवास में यह स्वीकार करती हूँ कि उस समय तुम्हारे प्यार की गिरफ्त में फँसंकर और अपनी माँ से विद्रोह करके तुमसे निकाह करना मेरे जीवन की सबसे बड़ी भूल थी।
हाँ माँ! आज मैं भरे मन से यह स्वीकार करती हूँ कि तुम एकदम सही थीं और मैं बिलुकल गलत। बाप का माथा मेरे सिर से उठ जाने के बाद तुम मेरे लिए माँ-बाप दोनों बन गई थीं। और मैं...मैंने किस बेहयाई से यह कह दिया था कि मैं अब बालिग हो गई हूँ और अब मेरी जिन्दगी पर तुम्हारा कोई हक नहीं है। हाँ माँ! उस समय अनवर के प्यार का जादू मेरे सिर चढ़कर बोल रहा था।
हाँ अनवर! तुमने निकाह के दो साल के अन्दर ही किस रुखाई से तलाक...तलाक...तलाक कहकर सब-कुछ खत्म कर दिया था क्योंकि तुम्हारी जिन्दगी में मुझसे हसीन औरत सायरा जो आ गई थी।
हाँ माँ! मैं जानती हूँ कि उस समय भी तुम मुझे माफ करके गले लगा लेतीं लेकिन इसमें भी तो मेरी गैरत आड़े आ गई थी।
यह बीस साल पहले की बात है जब मैं तलाकशुदा शाहीन से दोबारा शान्ति बनकर सड़क पर बेसहारा खड़ी थी। उस समय मैं टूटी हुई जरूर थी लेकिन मैं पूरी हिम्मत से गोद की बच्ची को प्रगति नाम देकर बड़ा करने में जुट गई थी।
हाँ माँ! आज बीस साल बाद मैं तुमसे फिर से मुखातिब हूँ। प्रगति अब मुझसे दो इंच लम्बी होकर जावेद से निकाह करने के लिए ढिठाई से मेरे सामने ठीक उसी तरह खड़ी है जैसे मैं उस समय तुम्हारे सामने खड़ी थी। आज उसने भी मुझसे कह दिया है कि अब वह बालिग हो चुकी है और मेरा उस पर कोई हक नहीं है। मैं तुम्हारी ही तरह हैरान और परेशान हूँ माँ!
मैं बेबस हूँ प्रभु! मैं तुम्हारे सामने हाथ जोड़कर भीख मांगती हूँ, मेरे किए गुनाह की सजा मेरी प्रगति को न दे। उसे बचा ले प्रभु!

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