नई दिल्ली, 02 जनवरी। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के फैसले को सही ठहराया है। पांच जजों की संविधान पीठ ने सोमवार को चार-एक के अंदर से यह फैसला सुनाया। बेंच ने कहा कि पांच सौ और एक हजार के नोट बंद करने की प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं हुई है।
न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि आर्थिक मामले में संयम बरतने की जरूरत होती है और अदालत सरकार के फैसले की न्यायिक समीक्षा नहीं कर सकती। यह भी कहा कि आर्थिक फैसले को पलटा नहीं जा सकता।
संविधान पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नजीर, बीआर गवई, एएस बोपन्ना, वी रामसुब्रमण्यम और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल थे। इनमें से जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बाकी चार जजों की राय से अलग फैसला लिखा। उन्होंने कहा कि नोटबंदी का फैसला गैरकानूनी था। इसे गजट नोटिफिकेशन की जगह कानून के जरिए लिया जाना था। हालांकि उन्होंने कहा कि इसका सरकार के पुराने फैसले पर कोई असर नहीं पड़ेगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि नोटबंदी से पहले सरकार और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के बीच बातचीत हुई थी। इससे यह माना जा सकता है कि नोटबंदी सरकार का मनमाना फैसला नहीं था। संविधान पीठ ने सरकार के फैसले को सही तो ठहराया, लेकिन बेंच में शामिल जस्टिस बीवी नागरत्ना ने इसके लिए अपनाई गई प्रोसेस को गलत ठहराया।
ज्ञात रहे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 08 नवंबर 2016 को देश के नाम संदेश में आधी रात से 500 और 1000 रुपए के पुराने नोट बंद करने का ऐलान किया था और प्रधानमंत्री की घोषणा के चार घंटे बाद ही ये पुराने नोट चलन से बाहर हो गए थे।
सरकार की तरफ से आनन-फानन में सुनाए गए इस फैसले के खिलाफ देश के अलग-अलग हाईकोर्ट में कुल 58 याचिकाएं दाखिल हुई थीं। इन याचिकाओं में कहा गया था कि सरकार ने भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम की धारा 26(2) का इस्तेमाल करने में गलती की है। सुप्रीम कोर्ट ने सभी की सुनवाई एक साथ करने का आदेश दिया था।
याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि धारा 26(2) किसी विशेष मूल्यवर्ग के करेंसी नोटों को पूरी तरह से रद्द करने के लिए सरकार को अधिकृत नहीं करती है। यह केंद्र को एक खास सीरीज के करेंसी नोटों को रद्द करने का अधिकार देती है, न कि संपूर्ण करेंसी नोटों को। मामले की सुनवाई के दौरान पूर्व वित्त मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिदम्बरम ने दलील दी थी कि केंद्र सरकार खुद ऐसा कोई फैसला नहीं ले सकती और ऐसा केवल आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की सिफारिशों पर किया जा सकता है।
इस मामले में केंद्र सरकार ने कहा था कि नोटबंदी का फैसला रिजर्व बैंक के केंद्रीय निदेशक मंडल की सिफारिश पर ही लिया गया था। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा था- नोटबंदी सरकार का बिना सोचा-समझा कदम नहीं था, बल्कि आर्थिक नीति का हिस्सा था। उन्होंने कहा था कि आरबीआई और केंद्र सरकार एक-दूसरे के साथ सलाह-मशविरा करते हुए काम करते हैं।
वहीं आरबीआई ने भी कोर्ट को बताया था कि सेंट्रल बोर्ड की मीटिंग के दौरान आरबीआई जनरल रेगुलेशंस, 1949 की कोरम से जुड़ी शर्तों का पालन किया गया था। इस मीटिंग में आरबीआई गवर्नर के साथ-साथ दो डिप्टी गवर्नर और आरबीआई अधिनियम के तहत नॉमिनेटेड पांच डायरेक्टर शामिल हुए थे।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि नोटबंदी से नकली नोटों में कमी, डिजिटल लेन-देन में बढ़ोत्तरी, बेहिसाब आय का पता लगाने जैसे कई लाभ हुए हैं। अकेले अक्टूबर 2022 में 730 करोड़ का डिजिटल ट्रांजैक्शन हुआ, यानी एक महीने 12 लाख करोड़ रुपए का लेन-देन रिकॉर्ड किया गया है, जो 2016 में 1.09 लाख ट्रांजैक्शन, यानी करीब 6952 करोड़ रुपए था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में सरकार की नीति और नीयत ठीक थी। साथ ही इसके लिए केंद्र सरकार ने आरबीआई से मशविरा भी लिया था। लिहाजा नोटबंदी पर सवाल उठाने वाली सभी याचिकाएं खारिज की जाती हैं। हालांकि कोर्ट ने साफ कर दिया था कि नोटबंदी के फायदे-नुकसान के आधार पर वह फैसला नहीं सुना रहा है। नोटबंदी करते समय सरकार को उम्मीद थी कि नोटबंदी से कम से कम 3 से 4 लाख करोड़ रुपए का काला धन बाहर आ जाएगा, मगर सिर्फ 1.3 लाख करोड़ रुपए का काला धन ही सामने आया।
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